देवकी का बेटा | Devaki Ka Beta
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देवकी का बेटा १७
“वे यहां हमसे पुराने निवासी हैं । उनके हाथ में यमुना का व्यापार है ।
कंस तक उससे नहीं अटका ।”'
“कंस नहीं अटका, क्योंकि वह अनार्य्यों का मित्र है। कालिय ने सर्वा-
: घिकार कर रखा हूँ । यमुना का वह भाग तो हमारे लिए वर्जित ही है । और
कालिय वंशी, ये नाग भी तो यहां पहले नहीं रहते थे । उत्तर के गरुड़ों ने इन्हें '
मारकर भगाया था।”
“सो तो है ।” भीतर से पितामही ने कहा, “किंतु नागों के पास शक्ति
हूं, धन है । वधू ! उनसे न अटकना ही ठीक है । फिर तू कया नहीं जानती
कि हम संकट में हैं । तुम सबकी रक्षा करना नन्दगोप पर आश्रित हैं। और
अंधक कंस अभी नन्दगोप पर संदेह ही करता है ।”
“अरे तु खाता चल न ! ” रोचना ने कहा, “देखूं भीतर क्या हो रहा
है ।” और वह चली गई ।
“कृष्ण ने खाया नहीं
“खाता क्यों नहीं ?” यद्योदा ने पूछा ।
“सोचता हूं।
“क्या भला ?”
“हुम गोप हैं न अम्ब ?””
महक
“तुम कहती हो हम,वृष्णियों के सम्बन्धी हैं ? ”
“हां, क्यों ?
“आप वासुदेव की पत्नियां और संतान यहां क्यों रहते हैं ? भर वह भी
छिपकर ! क्यों मातर ! ”
यशोदा सहसा उत्तर न दे सकी । कहा, “सम्बन्धी हैं। रहते हैं। तु तो
जानता ही है कि अंधक इस समय वृष्णियों के शत्रु हैं । खाता चल लेकिन ।”
“खाता हूं मां ! ” कृष्ण ने कहा, “और यह नाग भी हमारे शत्रु हूँ ? ”
“जिसका स्वाथ॑ अटकता हैं वह तो शत्रु हो ही जाता है, पुत्र ! अच्छा,
जाने दे । तूने यह नहीं बताया कि आज फिर क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं मातर,” कृष्ण ने कहा, “फिर मैं और चित्रगंधा घर आओ
गए।”
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