अर्थ शास्त्र | Arth Shastra

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Arth Shastra by मुरलीधर जोशी - Muralidhar Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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? अर्थशास्त्र का स्वरूप और क्षेत्र इस संसारमें मनुष्य जिस वातावरणमें जन्म लेता है वह वास्तवमें श्रनेक प्रकारकी पयरिस्थितियोका सम्मिश्रण मात्र है। इनमेंसे कुछ परिस्थितिया ऐसी है जिनके उत्पन्न करनेमें उसका कुछ हाथ नहीं है श्रौर कुछ ऐसी है जो प्रत्यक्ष श्रथवा अप्रत्यक्ष रूपसे उसीके श्राचरण दौर व्यवहारके फलस्वरूप उत्पन्न हुई है। इन सभी प्रकारकी परिस्थितियोका उसपर तथा उसके कार्योपर प्रभाव भ्रवश्य पडता है। श्तएव वह इन परिस्थितियों और तत्सम्बन्धी तथ्योंको समभकनेकी चेष्टा करता है। सम्भव है कि प्रारम्भमें वह केवल स्वाभाविक उत्सुकतावदही ऐसा करता रहा हो परन्तु निस्चयही झ्रागे चलकर इस प्रकार प्राप्त ज्ञानका प्रयोग उसने या तो परिस्थितियोको श्रपने भ्रनुकूल श्रथवा शझ्रपने को परिस्थितियोके अनुकूल बनानेमें किया । यही नही जहा परिवर्तेंन सम्भव नही हुभ्ना,वहा प्रतिकूल परिस्थितियोसे सघर्ष करनेमें भी इस ज्ञानसे उसको बडी सहायता मिली । उत्सुकता जाग्रत करने वाली वस्तुग्रोमें प्रकृतिका स्थान सर्वप्रथम है। मनुष्य अपने श्रास पास जीव-जन्तुग्नो श्रौर पेड-पौदोको देखता है श्रौर उनकी उत्पत्ति एव विकास,गुण तथा प्रवृत्ति जाननेकी चेष्टा करता है। इसी प्रकार वह झाकादामें सूर्य, चन्द्र तथा नक्षत्रोको देखता हैं। पृथ्वी पर प्रकाश, घूप, वृष्टि, नदी, समुद्र पहाड इत्यादि को देखता है। खानसे खनिज पदार्थ, लोहा, कोयला, सोना, चादी इत्यादि निकलते हुए देखता है। निश्चय ही उसके मनमें इनके विषयमें जाननेकी उत्कठा होती हैं। केवल देख-सुनकर प्राप्त साधारण बोधसे ही उसको सन्तोष नहीं होता। वह गहराईमें जाना चाहता है श्रौर कायं-कारणके सम्बन्धका ज्ञात श्राप्त करना चाहता है। वह इन विषयोकी छान-बीन करके उनके श्रन्तगंत नियमों श्रौर सिद्धान्तोकी स्थापना करता है तथा उनके श्राधार पर भावी 'परिस्थितियोके विषयमें कुछ श्रश् तक भविष्यवाणी करनेका भी दावा करता है। इस प्रकारके ज्ञानको विज्ञान कहते हे। भिन्न भिन्न विषयोके सम्बन्ध्में एकत्रित द




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