श्री परमात्ममार्ग दर्शक | Shri Paramatmamarg Darshak

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Shri Paramatmamarg Darshak by अमोलक ऋषि - Amolaka R̥shi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे गया करता का सैल्िक- जीकत वुक्ताल्‍्त ..... सरुदेश में मेड़ता एक दाहर है । उस में सेठ कस्तूरचन्द जी कॉसटिया रहते थे, आप ओसवाल कुछ में उत्पन्न हुए थे । आप श्वेताम्बर मूर्ति पूजक थे। व्यापाराथ आप सालव आंत के “ आसटे ” नामक शहर में निवास करने लगे । अकस्मात्‌ सेठ जी स्वर्ग के सहमान: चन गये । आपके जेष्ठ पुत्र एवं लघु पुत्र भी आपके अनुगामी बने । सध्यम पृत्र- चथू भी स्वर्ग सिधनारी । इस प्रकार काल की विकराल गति का अवलोकन करके सेठ जी की धर्म पत्नी जबरां बाई को वैराग्य उत्पन्न होगया । दो पुत्रों का मोह छोड़ कर १८ वर्ष पर्यत स्थानक बासी जेन धर्म की साध्वी दीक्षा पालकर स्वस्थ हुई । न इस प्रकार स्त्रकीय छुडम्वियों के वियीग जस्य व्यथा से व्यथित होकर सेठ साहब के द्वितीय पत्र केवलचन्द जी भोपाल शहर में आकर रहने ठगे । तथा परंपरागत मान्यता के अनुसार पंचग्रतिक्रमण, सवस्मर- णादि कण्ठस्थ करके जिन प्रतिमा पूजन-निरत रहने लगे । समय के अनुसार मनुष्य के जीवन में परिवर्तन होता रहता है । उस समय कुंवर ऋषि जी म० का भोपाल में आगमन हुआ । आप निरंतर एकांतर उपयास करते थे । एक चदर से रहते तभा स्वल्प संभापण करते थे ।




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