दशम शतक | Dasham Shatak
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43 MB
कुल पष्ठ :
1070
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भ० भगस् ॥ १५ ॥ २ ॥।
|! रा० राजगुद में जा० यात्रतू ए० ऐसा घर° बोले आ० आत्मकरद्धिवाखा ५० भगवच् दे° देन च०चार
प पाच दे० देव बा० वासान्तर को बीर व्यतिक्रमता प० पर द्धिपे हे० हां गो गौतम आ आत्म
ए, ` ऋद्धि से त० तपे ना० यावत् अ० असर कुमार ग० विशेष अ० असर कुमार वा० बासातिर भे° शेप
० तः ए० देसे ए० इष क कमते ला० या्रत् थर स्थनित कुमार ए० ऐसे वा० वाणन्यन्तर जो ०
आराहणा ॥ सेवं मेते भते्ति ॥ दसम सयस्स बिद्रैभ। उदेसो सम्मत्तो ॥१०॥२॥
रायगिहे जाव्र एवं वयास आदइद्रीएण भते ! देवे जाव चत्तारि पच देव व्रासेतराई
यीइक्तेते तेणपरं परिद्रीए ? हता गोयमा | आहृद्रीएण तंचव जाब एवे असुरकु-
मरिवि, णवरं असरकमारावासंतराईं, ससं तंचेव ॥ एवं एएणं कमेणे जाव थणिय
आप के वचन सय है. यद दशषवा शतक का दूसरा उद्देशा पूर्ण हुवा 1 १० ॥ २ ॥
दूपरे उद्देशे के अंत में देवपना कटा. आगे देव स्वरूप कहते ६. जग्रह नगरी के गृण शीर उद्यान में
श्री श्रमण भगवंत महादीर स्त्रामी को वैदना नमस्कार कर श्री गोतम स्त्रामी पूछने लगे कि अहो भगवन् !
¢ आस्म ऋद्धि से देवता चार पांच देवों के आवास उछंघकर आगे अन्य की कऋद्धिसे क्या जावे £ हां
¦ गोतम ! आस ऋद्धि ते देव चार पांच देवताके. आवास उछेघ सके पीछे अन्य की ऋद्धिसे जव्रेरेमदी
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