चरित्र चक्रवर्ती | Charitra Chakravarti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Charitra Chakravarti by सुमेरुचंद्र दिवाकर - Sumeru Chandra Diwakar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सुमेरुचंद्र दिवाकर - Sumeru Chandra Diwakar

Add Infomation AboutSumeru Chandra Diwakar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
इस संस्करण के संदर्भ में पंद्रह तलाश में चित्त में रह-रहकर उभर रहा था कि पंडित जी ने जितना विषय इस ग्रंथ में दिया है, वह उन्हें मिला कहाँ से ? क्योंकि १९४५१ में निर्णय हुआ कि चरित्र लिखना है, वर्षभर में चरित्र तैयार होकर १९४३ में मुद्रित भी हो गया, तो वर्षभर में भ्रमण कर इतनी सामग्रो' जुटा लेना संभव ही नहीं ॥। इतना ही नहीं, अपितु वे तो शिखरजी में भी उनके साथ नहीं थे, ' वे तो वापसी में लौटते हुए कटनी से अर्थात्‌ १६२८ के पश्चात्‌ आचार्यश्री की परीक्षा करने के बाद आचार्य श्री से जुड़े थे।। अत: प्रश्न यह था कि इतनी सामग्री आखिर पंडित जी को मिली तो मिली कहाँ से ? ' बस यहीं से पंडितजी का गौरव करने को मन करता है॥ उनके अधक परिश्रम पर आस्था उत्पन्न होती है।। वह साहित्य जो कि चारित्र चक्रवर्ती में एक सुंदर सी माला के सदृश्य गुफित है, आज मेरे सम्मुख भिन्न-भिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बिखरे मोती सदृश्य बिखरा पड़ा हुआ है॥ निश्चित ही १६४१ में पंडितजी के सम्मुख भी यह इसी तरह यत्र-तत्र बिखरा पड़ा होगा।॥। बहुत कठिन कार्य है इन्हें सहेजना, इनका क्रम निश्चित करना, इनकी सूची बनाना, उन्हें छाँटना व फिर उन्हें मस्तिष्क में बैठलाना, बैठा कर उनके पूर्वापर संबंधों का मिलान करना, और अंत में बगैर इनके इतिहास व इनकी प्रामाणिकता को तिल-तुष मास भो छेड़े, उन्हें ऐसी शैली में प्रस्तुत करना कि पाठकों को लगे कि वे आचार्य श्री के काल में आचार्य श्री के साथ ही विचरण कर रहे हैं।॥। निश्चित ही अदूभूत व अद्वितीय उद्यम की अपेक्षा करने वाला कार्य है यह ॥। स्वयं का अथवा जिनके साथ हम सतत रहे, उनका यात्रा अथवा जीवन वृतांत लिखना तो सरल कार्य है, किंतु जिनके साथ हम सतत नहीं रहे, उनकी यात्रा अथवा जीवन वृतांत की जानकारियों को एकत्रित करना, फिर उनकी प्रामाणिकता की परीक्षा करना, मात्र उनकी ही प्रामाणिकता की परीक्षा करना ऐसा नहीं, अपितु मैं जो कि इन्हें संकलित कर एक सुंदर सी माला का रूप देने जा रहा हूँ, तो मैं भी इस कार्य की सिद्धि के लिये प्रामाणिक व अधिकारिक व्यक्ति हूँ, की भी सिद्धि करना ॥ निश्चित ही दुरुह कार्य है यह ॥ पंडितजी ने दोनों ही परीक्षाओं को गरिमापूर्ण ढंग से उत्तीर्ण किया ॥। आइये अब इन बिखरे मोतियों के संदर्भ में कुछ जानें ।। पंडितजी के द्वारा लिखा गया यह चारित्र ग्रंथ प्रथम चारित्र ग्रंथ था, ऐसा नहीं, इस के पूर्व भी आचार्यश्री के चारित्र मुद्रित हो चुके थे।। सन्‌ १९ ३१ में सेठ जीवराज गौतमचंद जी ने मराठी में लिखा था उनके पश्चात्‌ पंडित बंशीधर जी शास्त्री (सोलापुर वाले) ने १६३३ में हिन्दी में लिखा।॥। इनमें से बंशीधर जी के द्वारा लिखित चारित्र विक्रम संवत्‌ १६८८ तक हुए तेरह चातुर्मासों का सिलसिले वार ब्यौरा देनेवाला अद्भूत संकलन ग्रंथ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now