मोक्षपहुड | Mokshpahud

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Mokshpahud by सुमेरुचंद्र दिवाकर - Sumeru Chandra Diwakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मोक्षपाहड - अक्खाणि बाहिरप्पा अंतरअप्पा हु अप्यसंकप्पो । कम्पकरंक विशु॒क्को परमप्पा भण्णए देवों ॥५॥ क ५ अक्षाणि बहिरात्मा ्रन्तरास्मा स्फुटं ्रात्मसंकल्पः । कर्मकलद्कु विमूक्तः परमात्मा भण्यते देवः ` [ इंद्रियां वहिरात्मा हैं भर्थात्‌ इन्द्रियो में उलका हुआ जीव शरीर आदि श्रनात्म पदार्थो मे. भ्रासक्त होकर बहिमुं ख होता है, इसलिये :उसे चहिरात्मा (अर्थात्‌ अपने स्वरूप से बाहर विचरण करने वाला बहिरात्मा ) कहा है। भ्रपनी आत्मा में श्रात्मा का सकल्पयुक्त भ्रन्तरात्मा है। श्रर्थात्‌ अनात्म शरोर आदि पदार्थों के प्रति श्रात्मीय भावना का त्यागकर श्रात्मामे स्वयं का निश्चय करना श्र्थात्‌ अन्तमुं ख बनने वाली अन्तरात्मा है! सम्पुरो कर्मरूपी कलंक रहित भगवान परमात्मा कहे गये हैं । है ॥ ॥ | विशेष--जिस आत्मा में कर्मझूपी सलितता थी और जो उस कर्म कलंक से विभुक्त हो गया, भ्र्थात्‌ जो आत्मा अशुद्ध थो और जिसने श्रशुद्धता का त्याग किया वह परमात्मा है। त्रिकाल शुद्ध या सदा शिव रूप आत्मा है यह सर्वेज्ञ शासन की देशना नही है। - मलरहिओ कलचतो अणिदिओ केवलो विसुद्धप्पा | ' परमेट्टी परमजिणों पिवंरो' सासमो सिद्धो ॥६॥ , 7. मल रहित. कलत्यक्तः प्रनिन्द्रियः केवलो विशुद्धात्मा । परमेष्ठी ,परम जिनो, शिवंकरः शाइवत्त: 'सिद्धः ॥। कर्म मल रहित, दरीर रहित, इंद्रियं रहित, केवलज्ञानी, विशुद्ध श्रात्मा परमेष्ठी भ्र्थात्‌ परमपद मे विराजमान, परमजिन, -शिव अर्थात्‌ मोक्ष को प्रदान करने वाले तथा अ्विनाशी सिद्ध भगवान हैं । विशेष--यहा अनेक नामो के द्वारा परमात्मा के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है ।. यथार्थ में गुणो की श्रपेक्षा परमात्मा भिन्न नही है । आरूहवि अंतरप्पा व हेरप्पा छेडिदूण तिविहेण । झाइज्जदि -परमप्पा उबदिद्ठ| जिणवरिंदेहिं ॥७॥ आरुह्य अन्तरात्मानं बहिरात्मान त्यक्त्व 'त्रिविधेन । घ्यायते ,; ` परमात्मरा. . उपदिष्टं जिनवरेन्रः ॥ 4 ८




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