वर्णी - अभिनंदन - ग्रंथ | Varni - Abhinandan - Granth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
718
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about खुशालचंद्र गोरावाला - Khushal Chandra Gorawala
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाशकी ओरसे
जिन महादायों ने आभार में दत्त आधथिक सहयोग देकर हमें आधथिक चिन्ता से उन्मुक्त किया है
उनका भी में उतना ही ऋणी हूं जितना कि विद्वान लेखकों का हूं।
शी गणेश दि० जैन विद्यालय सागर .की प्रबन्ब-कारिणी ने २०००, उधार देकर कार्य को
नहीं रुकने दिया। विज्ञप्ति निकालने पर जिन प्राहकों ने पांच पांच रुपया पेशगी तथा पूरा मूत्य भेज-
कर हमें सहयोग दिया है उनके भो हम आगभारी हे।
आधिक चिन्ता के न्यूनतर होने पर भी कागज पर सरकारी नियन्त्रण रहने के कारण उसकी
प्राप्ति में बहुत समय खोना पड़ा । अन्त में जब कुछ उपाय न दिखा तब श्री बालचन्द्रजी मलैया
ने आंदमी भेज कर एक गांठ बम्बई से बनारस मिजवायी जिससे प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ हो सका ।
बीच-बीच में प्रेस की परतन्त्रता से काब॑ रुक-रुक कर हुआ। अतः ग्रत्य के प्रकाशन में आशातीत
विलम्ब हो गया। चूंकि ग्रन्थ-समपंण खास अजद्भ था अतः उसके अभाव में हीरक जयनती महोत्सव
भी टलता रहा ।
इस महान् ग्रन्थ में क्या है; यह लिखने की आवद्यकता नहीं। फिर भी मेरा ख्याल है
कि शी खुशालचन्द्र जीने इसे सर्वाज्ञ पूर्ण बनाने के लिए पर्याप्त श्राम किया है और अभिनन्दत के
साय-साथ दार्षनिक, सँद्धान्तिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक ऐसी उत्तम सामग्री का संकलन किया है
जो कि वर्तमान तथा आगामी पीढ़ी के लिए सदा ज्ञान-बर्वक होगी। इस युरुतम भार को बहन करने
के साथ-साथ आधे के लगभग धन इकट्ठा करना भी इनके प्रभाव और प्रयास को कार्यों है। अतः
में इनका आभारी हूं ।
वर्णी -हीरक-जयन्ती -समिति के क्रमश: अध्यक्ष तथा मंत्री श्री बालचन्द्जी मलैया और श्री
नाथूरामजी गोदरे ने बड़ी तत्परता और लगन के साथ इन समस्त कार्यों को प्रारम्भिक संघटन किया
है जिसके लिए में आभारी हूँ।
धन्पवाद के प्रकरण में श्री पं० मुन्नालालजी रांघेलीय, सागर और पं० वंशीघरजी, व्याकरणा-
चार्थ, बीना का नामोल्लेख करना मं अत्यन्त आवश्यक समझता हुं जिन्होंने कि अपनी अमूल्य सम्म-
तियों द्वारा इस मागं॑ को प्रदस्त बनाया है ।
मेरी निज की इच्छा तो यह थी कि यह प्रस्थ अमूल्य अथवा अल्पमूल्य में ही पाठकों को
सुलभ रहता परन्तु अधिकांश दुरदर्शी सदस्यों की यह सम्मत्ति हुई कि प्रस्थका महत्त्व न गिराने के
लिए इसका मूल्य रखा ही जाय तथा जो भी द्रव्य विक्रप से आवे उसके ढवारा पूज्य श्री बर्णीजी की
परम प्रिय दिक्षा-संस्थाओं-स्या० वि० बनारस तथा वर्णी विद्यालय, सागर का पोषण किया जाय ।
ऐसा करने से दानी' महानुभाषों हारा उदारतावश दिया हुआ द्रव्य भी सुरक्षित रह सकेगा ।
अन्त में अपने समस्त सहयोगियों का पुन: पुनः आभार मानता हुआ त्रुटियों के लिए क्षमा
प्रार्थी हूं।
वर्णीभवन--सागर पन्नाल!छ जैन, साहिस्याचार्य
रा १०९, संयुउतमंत्री ,
बर्णी हीरक जयन्ती-समिति ।
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