सृष्टि उनकी : दृष्टि मेरी | Shristi Unaki Dristi Meri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पीताम्बरा
मीरा के सम्पु्णं जीवन पर आधुत डॉ भगवतीशरण मिश्र को संदूय:
प्रकाशित' उपन्यास “'पीताम्बरा” उदन्यासकार के शब्दों में “उपन्यास होते हुए भी
एक तरह से भीरा की जीवनी है ।” उपन्यास लेखक का यह भी दावा है कि उन्होने
“मीरा के सम्अन्ध में प्रचलित विभिरन भ्रान्तियों का लिवारण कर उसकी कथा को
भरसक सही परिप्रेक्य में प्रस्वुत किया है। विद्वान लेखक ने इस ऐतिहासिक
उपन्यास को प्रामाणशिकता प्रदान करने के लिए मीरा से सम्वन्धिते सभी स्थानों की
यात्रा करने के साथ-साथ वहाँ के लोगों से, वहाँ संचालित शोध-संस्थानों से भी
सम्पर्क किया । अन्ततः, लेखक की यात्राओं के दौरान मीरा के सम्बन्ध में प्राप्त
जानकारी के आधार पर सीरा के जीवन का संक्षिप्त इतिवृत्त लेखक के अनुसार
इस प्रकार बनता है। मीरा का जन्म संवत् 156! (1504 ई०) छुड़की ग्राम में
हुआ था। कुड़की में मीरा का पितृगृह जहाँ उसने जन्म लिया था. आज भी
सुरक्षित है । इसके समक्ष एक छोटा-सा कृष्ण-मंदिर भी है जहाँ मीरा के पिता
और बालिका सीरा' कृष्णोपासना करते थे । लेखक द्वारा सम्पर्क किए जाने पर.
किसी भी मेडतावासी ने मीरा का जन्म-स्थल मेड़ता नहीं बनाया । मेड़ता मीरा के
पितामह रांव दूदा की राजघानी थी । चार-पाँच वर्ष की उम्र में ही कुडकी से
रावदूदा के पास मेड़ता आ गई थी और यहीं उसका विवाह भी हुआ था । मेड़ता
मे रावंदूदा का प्राचीन महल आज भी सुरक्षित है । महल के पाइबें में प्रसिद्ध
चतुभुज मंदिर अवस्थित था जिसका जीणद्धार हो चुका है किन्तु कहां जाता है
कि मंदिर की मूर्ति वही है जिसकी पूजा रावदूदा ओर मीरा किया करते थे ।
*मेडतावासियों को इस बात का गर्व है कि मीरा मेड़ता में ही पली-बढ़ती
थी। यह बात इस मनगढ़न्त किसी को भी झुठलाती है कि मीरा के पद नीची
जातियों और आदिवासियों में ही अधिक लोकंप्रिय हैं और सम्ज्ान्त लोग अब भी
मीरा के प्रदेश में ही उसे सम्मानजनक दृष्टि से नहीं देखते ।' लेखक को यहू देखकर
अपार हुष हुआ कि “चित्तौड़गढ़ में वह मंदिर आज भी सुरक्षित है जिसे मीरा के
1. पीताम्बरा निवेदन, पु० 11
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