बच्चों की कुछ समस्याएँ | Bacchon Ki Kuchh Samasyaen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बच्चों की दुनिया है| मनुष्य वास्तविकता से; इस दुनिया के कट 'झन्लुभवों से भागता हर हालत में है। एक दालत में तो बंद केवल अपना बचाव ही करता है । पर दूसरी दालत में वद कुछ सूजन का काम भी करता है । इसी सजनात्मक प्रवृत्ति के कारण मनुष्य में छादशे- चादिता उत्पन्न होती है। साधारण चच्चे की दुनिया में थीर पागल की दुनिया में केवल यद्दी अन्तर है; ! पागल सिफफ इस दुनिया से भाग खड़ा दोता दै 1 साघारण बच्चा भी इस दुनिया से भागता है, पर भाग फर वद्द किसी सजनात्मक कार्य में लग जाता है, अपने खयालों में वह कुछ करता या चनाता रद्दता है । माता-पिता यह पूछेंगे कि क्या यच्चों का इस तरदद खयाली दुनिया में रदना अच्छा दि। श्रच्छे पीर घुरे का तो 'यहां सयाल ही नहीं उठता । २ से ४ वर्ष 'की अवस्था में तो कल्पना-शक्ति दी प्रधान होती है । यदि 'र फहदीं रुकावट न हो तो इस उम्र के पार दोने पर बच्चे खयाली दुनिया श्रौर झसली दुनिया के भेद के सममने लगते हैं. ौर इन दोनों फे घीच में माप तोल कर 'अपने जीवन के ऐसा यनाते हैं. जिससे दोनों दुनिया से उनका अपना नाता यना रहे । कर घद्चां यदि अवस्था थीत जाने पर भी 'म्रसली दुनिया फे मूल्य के! अल प्रकार नहीं पददचान सकता है तो सममना ..'याहिये कि बद्द रोगी है, उसके जीवन में बड़े दयाव पढ़े हैं और धड़े फदु । श्छ




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