ऋग्वेद के बनानेवाले ऋषि | Rigweda Ke Bananewale Rishi

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Rigweda Ke Bananewale Rishi  by सूरजभान वकील - Surajbhan Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( प्‌. ) रुणः ससरज्यात्‌ विद्वान अदब्घः विमुमोक्त पाशान । अथ- शुन:दपने जो पकड़ा हुआ था ओर तीन खम्भोंसे बांधा हुवा था इस प्रकार आदित्य देवताका आह्वा नन किया कि बुद्धिमान प्रकाशमान दीप्रिमान वरुण उसके वेघन खोल देवे । कुमार कऋषिने ऋग्वदक मंडल ५ के सूक्त २ की ऋचा ७ में झुनः शेपका नाम इस प्रकार वणन किया हे । झुनः झोपम्‌ चित निटितम्‌ सहख्रात्‌ यूपात्‌ अमुज्नः अद्यमिष्ट हिसः । अध-तूृन झुन: ठाप को उसकी प्राथनापर छुड़ाया जो हजार चेंघनीस चंचा हुवा था | हिरण्यस्तूप १ ( दे१-रेए )) ऋग्वेद भाष्यमें दयानन्दने प्रथम मंदलके मक्त २१ से ३५ तक का ऋषि “आह्िरसो हिरण्यस्तूपः” अर्थात्‌ अड्टिरा के बट वहरण्यस्तूपका 1लखा नघष पमथम मडलक मक्त ३१ की ऋचा १ में अधांत अपनी बनाई सबसे पहली ऋचामें अड्रिराकी स्तुति करता हे । त्वमस नयमा आउइडरा कऋ्तष । अथ-हं आग्न त पहल अगिरा कऋषियी | कण्व .१ ( रे६--9रे ) ऋग्वेद भाष्यमें दयानन्दने प्रथम मंदलके मृक्त ३६ से 9३ तक का ऋषि घोर: काण्व:” या “घोर पुत्र: कण्बः'' [लिखा हैं यह ऋषि अपन बनाय सूक्ताम इस प्रकार अपना नाम लता है ।




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