भाग्य और पुरुषार्थ वा तकदीर और तदवीर | Bhagya Aur Purusharth Va Takadir Aur Tadavir

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhagya Aur Purusharth Va Takadir Aur Tadavir by सूरजभान वकील - Surajbhan Vakil

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सूरजभान वकील - Surajbhan Vakil

Add Infomation AboutSurajbhan Vakil

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १३) झास पासके मामूली परमाणु श्रात्मा से चिपटकर उसकी ` चाल को बिगाड़ देते हैं श्रौर द्रव्य कमें कदलाने लगते हैं । संस्कार कहो वा कमं बंधन कहो, चाहे जो नाम रक्लो, बात श्रसल यह दी है कि कपाय करने से फिर फिर कषाय पैदा होने के संस्कार पड़ते & ¦ कषायो के उत्पन्न होते रहने से जीव की उन्मत्त की सी दशा हो जाती है, जिससे उसको अपने भले बुरे की कुछ भी तमीज़ नहीं रहती है, बुद्धि भ्रष होकर श्रपने को कुछ से कुछ सखमसने लग जाता है; श्राप दी अपने हाथो श्रपना श्रहित करने को उतार हो जाता दै, विषय कषायो के बस होकर अपने को बेबस समभने लग जाता, इस दीका नाम मोहनीय कमं है जिसके दो मेद ह पक दर्शन मोहनी और दूसरा चारि मोहनी; अपने को कुछ से कुछ समभ बैठना, बुराई को मलाई श्रौर श्रद्दित को हित मानने लगना यद दही दृशन मोहनीय का काम हैं श्रौर यद ही भिथ्यात्व है ! कषायो का भडकना, विषय कथाय मं फंसना, रागद्वेष करना यह चारित्र मोहनीय का काम है कषायो के भडकने से श्रात्मा की जानने की शक्ति पर मी पदां पड़ जात। दहै, वह शक्ति दो प्रकार की दहै, एक दशेन श्रौर दूखरा ज्ञान, संसारो जीव श्रपनी इन्द्रिय के ढारा जब किसी वस्तु को जानने की तरफ़ श्रपना उपयोग लगाता हैतो तुरन्त हो उखको उस वस्तु का ज्ञान नहीं होता है किन्तु सबं से पहले उसको यह दी मालूमहोता है कि कुछ है, इस दी को द्शन कहते हैं, फ़िर जब वह यह जानने लगता है कि उसका कुछ श्राकार है था उसका कोई रंग है या किसी प्रकार की कोई गंध है या किसी प्रकार का कोई स्वाद है, इत्यादि जब किसी भी इन्द्रिय का कोई विषय उस बस्तु में मालूम होने लगता है, तब दी से बह जानना हीन कहलाता है । दर्शन पर पदां पड़ना श्र्थात उसमें खराबी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now