मृत्युञ्जय | Mrityunjaya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी अभयानन्द सरस्वरती - Swami Abhayanand Sarswati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उत्यु कया है।- एक
“परककों देवों भवति यदेनसर्चयन्ति । सर्को
झन्वों भवति यदनेनाचन्ति । सर्कसन्न सवति
कट श्र लेवसो रद ल्ठ्ः 19
सचातझुतानि । सकॉदुक्नो भवति सबूत कटुकिज्ञा” -
निरू० ने० श0० प्र ॥
सब भूतों का आधार और सत्कार करनेहारा जो होता हे
सो अरे है । प्राण ही सब भूतों -का अच्न है सत्यु, अर्क, प्राण
संज्ञावान् और अशन धर्म वान् यही त्वष्छ का चूतीय मुख है ।
सोस+सुरा+श्राए अझि, सूर्य चा सन, यही तीन सुख
के एक भाव की संज्ञा है। ).... _ «
शिर:---थी युतसाथधी यतेततुशिर: । सस्तकस् १
शिरसी, शिरांखि । उणा0० १८४ ॥
आधार चा आश्रय वाचक की शिश-यह संज्ञा होता है ।
इन तीनों त्विप कर्म करने वाले शिर परस्पर एक दूसरों के
भाधघार पर स्वित होते हुए काय करते हैं तब सहान् वलवान,
अवस्था में रहते हैं, परन्तु परस्पर का आधार छोड़ देते हैं तव
गत्यु अचस्था को प्राप्त होते हैं ।
सोम, खुरा और प्राण इन तीन सत्तावान् शक्ति से विश्व की
सब क्रिया चली है । इन तीनों क्रिया का एक भावही मन शक्ति
है । इसलिये मन के इन तत््वीँ का यथावत् जानने से मन स्वरूपी
पक महान भूत महान शक्ति आत्माके अंकुश में आजाती है
तब उसको इच्छापूवक जहां चाहते हो उस संसार के स्थ में
वां जगत्कार्य के अन्दर जो २ कार्य दचते विगड़ते हैं. उनमें से
किसी कार्थ में छगा सकता है। जर्थात् मन का सत्यस्वरूप
ज़ानकर उससे-अभ्यासयोग (झयरहिव होकर ससझुवस्था) करने .
|
User Reviews
No Reviews | Add Yours...