धार्मिक कहानियां | Dharmik Kahaniya

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श्रीशशिकान्त - ShreeShashikant

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हस्तीमल जी महाराज - Hastimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६ जयश्री झतिधय दुःख से समय विताती थी । एक दिन वह श्रपने चिर- पालित मैना को क्यवन्ना के पास जाने शरीर दुःख निवेदन करने को कुछ समभक्ा रही थी कि उसकी नजर एक श्रादमी पर पड़ी जो शोक श्रीर थाम से भुका हुआ था । जयश्री को देखते हो वह वोल उठा कि प्रिये ! तुम्हारी दशा विगाड़ने वाला मैं निलंबन कयवत्ना हूं । सती, तुम धन्य हो श्रोर तुम्हारी टेक भी घन्य हैं । जयथी पति को पाकर परम प्रसन्न हो गयी एक दिन देवदत्ता के बाहर जाने पर उसकी मां ने कयवन्ना को फट- कार कर घर से वाहर कर दिया क्योकि अ्रव उससे द्रव्य प्राप्ति की कोई आशा नहीं रह गई थी । देवदत्ता को कंयवन्ना से हादिक प्रेम हो गया था 1 श्रत: वह जव घर श्रायी श्रीर कयवन्ना को वहां नहीं देखा तो श्रपने सारे श्रामूपणों के संग तत्क्षण उसके घर पर चलो भ्रायी तथा बोली कि 'मैं भी श्रापके बिना नहीं रह सकती । ये सारे श्रापके श्राभूपण हैं, श्रव इनसे अपनी गृदस्थी चलाइए श्रौर मुझको भी श्रपने दारण में रहते की आ्राज्ञा दीजिए । कयत्रन्ना भाग्य की बिडस्वना पर विमुग्ध था । जयश्री भो यह दृश्य देख कर दग थी । इस तरह वे तीनों परस्पर भ्रेमपूर्वक समय चिताने लगे । * कयवन्ना ने उन आभूपणों से श्राथे का व्यापार श्रौर आधे के दोनों पत्नियों के श्राभुपण बनवा दिये । एक दिन किसी दूसरे देश जाते हुए जहाज से कयवन्ना ने परदेश जाकर व्यापार करना चाहा श्रौर श्रपनी युगल पत्नी को भी इसके लिये राजी कर लिया । चलते समय उसने श्रपनो पत्नी से कहा कि मेरे पीछे तुम दोनों नौति-धर्म के संग घलना । स्त्रियों ने भी उसे प्रेमपुर्वक विदाई दी । जहाज दूसरे दिन जाने वाला था । श्रत: कयबन्ना उस रात को श्रपने घर है वश्हर एक देवालय मे जाकर यहां पड़ी एक खाट पर जाकर सो गया । कथयवद्ना के सो जाने पर वहां एक बुढ़िया चार युवतियों के साथ दवाथ में दीपक लिये श्रायी शरीर उन चारों से बोली कि दीघन इस खाट को




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