श्रीव्यासप्रणीतब्रह्मसूत्रांनी | Shriivyaasapraniitabrahmasuutraani
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
597
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९३०) रतप्रभाभासिते [| अ पा+
मिंग इटादिकारिणो न ज्ञानकमसमच्चयानष्ठा-
यिनः: । पश्चाधिविद्यामिहात्मविद्येत्यपचर्रन्ति
प्रकरणात् पश्नाप्िविद्याविद्दीनत्वाशेदमिटरादि-
कारिणां गणवादेनान्नव्वमद्वाव्यते पश्चायिवि
याप्रशंसाये । पश्चाधिविया इद विधित्सिता
चाक्यतात्पयावगमात् । तथा हि श्रत्यन्तरं च-
न्द्रमण्डले भोगसद्भाव॑ दशयति “स सोमलोके
भतिमन क्षय पनरावतते” इति। तथान्यट्पि श्र
त्यन्तरं अथ ये शर्त पितणां जितलाकानामान-
न्दा: स एक: कमदेवानामानन्दो ये कमणा देव-
त्वमभिसम्पद्यन्ते” इतीादिकारिणां देवे: सह
संदसतां भोगप्राप्ति दर्शयति । एवं भ्ाक्तत्वाद-
न्प्ठाववचनस्यटाटिकारिणों जीवा रंहन्तीति
प्रतियन्त । तसमाद्रंहति सम्परिष्वक्त इति युक्त-
मेवोक्तम॥ '७॥
रुतात्ययशनशयवान् दृ्टर्माताया
यधतमनवत्ध ॥ ८ ॥
इटादिकारिणां घूमादिना वत्मना चन्ट्रमण्ड-
रयन्तराथ सूत्रशपं व्याचष्टे ॥ तथाहीति ॥ एवं गतिपयालाचनया वैं-
राग्यमिति सिद्धम ॥ ४ ॥
इतानीं गत्यन्तरक्षाविनीमागर्ति निरूपयति ॥ कतात्यय इति-॥
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