भारत में समाज | Bharat Me Samaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2/भारत में समाज भारतीय समाज का उद्विकास : अध्ययन के स्त्रोत (हछाए0ा ० पाता 5०दा९1/ : 50प्रा८€5 01 उप प्राचीन धर्म-ग्रन्यों की सहायता स भारतीय समाज क 'उद्विकास का अध्ययत्र किया जा सकता है। यह समाज आज ठीक वैसा नहीं है, जैसा प्राचीन काल में था। समय के साय-साम इसमें कई परिवर्तन आय हैं। इसकी कला, साहित्य, सस्कृति, प्रमुख सस्थाएँ, परम्पराएँ, पारिवारिक एवं जाति-व्यवस्था, आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था में काफो बदलाव आये हैं। समय क साथ साथ भारतीय समाज का उद्विकास हुआ है और इस उद्विकास की जानकारी हमें प्रमुख निम्नलिखित स्रातों स पिलती है -- (1) धर्म ग्रन्थ-- इनमें द्राह्मणो, बौद्धों एव जैनो क धर्म ग्रन्थ आते हैं। ब्राह्मण धर्म-ग्रन्थों में चार बद- ऋग्वेद, सामवद यजुर्वेद एव अथर्ववेद प्रमुख हैं। अन्य में आरप्पक उपनिषद्‌ , वेदान्त स्मृति-साहित्य, महाकाब्य (रामायण व महाभारत) तथा पुराण आदि ग्रन्थ आतं हैं। इन धर्म-ग्रन्यों स प्राचीन भारतीय समाज एवं सस्कृति तथा आर्यों क सामाजिक, आर्थिक, रॉजनीतिक एव धार्मिक जीवन के सब में विस्तृत जानकारी मिलती है। भारतोय समाज के विकार्स से सबंधित महत्त्वपूर्ण सामग्री, साहित्य, महाकाव्य एवं पुराणों में भो मिलती है। इन ग्रन्थों में तेत्कालीन समाज क रहन-सहन सस्कृति, राजनैदिक दशा, भीगालिक स्थिति आदि का पता चलता है। 6 वदान्तों और 3 सूत्र-ग्रन्यों स उस समय क समाज, परिवार वर्ण और आश्रम को समझने में काफी मदद मिलती है। बौद्ध पर्म गन्थों में पिटक जातक, पालि बौद्ध और सस्कृत बौद्ध ग्रन्थ प्रमुख हैं। जिपिटक मम बौद्ध घर्म क उपदेश, दैनिक जीवन सम्बन्धी व्यवहार का तरीका विधि और निपधों का उल्लख है। जातक प्रन्थो में बौद्धकालीन भारत की सामाजिक आर्थिक एव सास्कृतिक व्सवस्थाओं (3) विदेशियों के विवरण-- समय-समय पर विदशों स आने वाले लोगों ने भी भारत के बारे में लिखा है। इनमें फारस का स्काईलैक्स, यूनान का हिकटियस, मिलेटस, हैरोडाटस, फारस




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