घंटा | Ghanta

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Ghanta by पाण्डेय बेचन शर्मा - Pandey Bechan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कह घण्टा के गयी--“केसी नीठी, चमकीठी, छबीली हरे *. देखो ! देखो ! कितनी बड़ी मछली--जअहा दा हा ” मछली देखनेको सुन्दरी ज्यो ही कुकी, त्यो ही तूफानके एक तेज भोके ने जद्दाज को ज़रा टेढ़ा कर दिया । और छो !. फ्रेच-सुन्दरी नशेसे डखड़ाकर जहाजके नीचे कुक गयी । मद्दाराजने उसे सेंभालना चाहा--मगर थे बह नशेमें ! फलत सुन्दरी के हाथ राजाका दुपट्टा ऊगा । वह सिनेमाके खतरनाक नज्जारेकी तरह मूलने ठगी । “ओह ! अहद ! उद्द '!” महाराजका गढा फेस गया ! कह दुपट्टा ढीढा करने छगे ! मोपले और गवैया घबरा कर मदंदको लपके ! “दुपट्टा न खोढो ! नहीं तो औरत दरिया में डूब जायेगी । राजा '--महाराजा ”” फ्रेंच साहबने छछठकारा । मगर, छपनछप-छप 11 अपना गला छुडा, दुपट्रेके साथ, महाराजने सुन्दरी को समुद्र में डाल दिया । देखने छायक था इस चक्त माशियर मोपलेका रूप--छाठ, उद्देछित राजाका गला दाब बह बिगड़े--“ नीच ' बुजदिछ ! तू दी आयंकुल मातण्ड मददामादेशर है ?” ९




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