दीवान घालिब | Divan Ghalib
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.11 MB
कुल पष्ठ :
193
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसी का चाम काला महल है बहुत झ्ालीशान इसारत 1 किसी जमाने में यह राज सजर्मिह की हवेली कहलाती थी जो जोधपुर के राजा सुरजर्सिट के बेटे थे झऔर जहाँगीरी ज़माने में यहाँ रहते थे । ऐसा झनुभान हैं कि सिर्जा इसी मकान में पैदा हुए होंगे क्योकि मिर्जा के पिता ससुराल में घर-जमाई बनकर रहते थे । पिता के देह्वात्त के समय सिर्जा की श्रायु पाँच बरस की थी । अब बह श्रण्ते चाचा नसीरुल््ला बेग की में रहने लगे किन्तु चार बरस बाद ही हाथी पर से गिरकर चाचा थी सर गये । अब स्थायी रूप से सिर्ज को ननिहाल में रहना पड़ा । पिंता की मृत्यु के बाद अलवर राज्य की श्रोर से मिर्जा श्नोर उनके भाई को दो गाँव झौर कुछ मासिक पेंशन में बंबी 1 मिर्जा के चचा को झँग्रे जी राज्य की बोर से आगरा जिले में ही दो गॉँव मिले थे झौर उनके मरने के बाद सरकार की श्ोर से इन लोगों को साढ़े सात सौ रुपया सालाना पेंशन मिलती रही जो १८५७ के गदर तक जारी रही 1 मिर्जा का बचपन आगरे में बीता । फारसी अरवी की प्रारस्भिक शिक्षा तो श्रागरे में हुई .लेकिन इसका पूरा ब्यौरा कहीं नहीं मिलता । लगता है ढंग से पढाई-लिखाई सही हुई होगी लेकिन सिर्ज़ा ने जैसे भी हो हर विषय फर ज्ञान अजित किया होगा क्योंकि उनकी रचनाशों में ज्योतिष तक दर्शन संगीत चक्षत विज्ञान पदार्थ विज्ञान श्रादि हर विषय की श्रसंख्य परिभाषायें मिलती हैं। कहा जाता है कि सिर्जा को प्रारम्भिक दिनों मैं प्रसिद्ध उद्े शायर नजर भकबराबादी ने भी थोड़े दिन पढ़ाया था । दस-ग्यारह वर्ष की झायु में ही ये शेय कहने लग गये थे । जब सिर्ज़ की उम्र १४ वर्षे की हुई तब उन्हें फ़ारसी का एक बहुत बड़ा पंडित दिक्षक के रूप में मिल गया । मिर्जा के इस शिक्षक का पारसी साम हुरमुज था जो इस्लाम बर्म ग्रहण करने के बाद सुल्ला झ्रव्दुल समद के नाम से प्रसिद्ध हो गया था । मिर्जा ने उनसे दो ब्ष तक फ़ारसी पढ़ी । मिर्जा का झुकाब शुरू से ही फ़ारसी की श्रोर था । श्रएतव श्पने इस गुरु से उन्होंने बहुत कुछ सीखा । श्रपने गुरु पर सिर्जा को बड़ा गर्व था क्योंकि उनकी दिला ने ही मिर्जा को फ़ारसी का ऐसा पंडित बना दिया था कि वह ईरातियों की भाँति फ़ारसी बोल शोर लिख सकते थे । £ झ्रमस्त १९६१० सें १३ वर्ष की उम्र सें मिर्जा का विवाह दिल्ली के प्रसिद्ध शायर श्रौर नदाब लुहारू के छोटे भाई चवाब इलाही वर्श खाँ मारूफ की बेटी उमराव बेगस से हुमा । ये मिर्जा से दो साल छोटी थीं 1 थों तो
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