हिंदी गद्य के सोपान | Hindi Gadya Ke Sopan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
84 MB
कुल पष्ठ :
247
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी गद्य के सोपान प्र
'संम्भवतः यह गद्य-साहित्य सृजन की धारणा से लेखकों ने लिखा ही नहीं । केवल मात्र
भ्रपने धमं-सिद्धान्तों के व्यापक प्रचार का. जनोपयोगी सरल' माध्यम ही उन्होंने
इस को समक्ा श्रौर लिखा । उदाहरण के लिए संवत १२३४ में पृथ्वीराज के समय
के एक पत्र में लिखा गद्य का यह नमूना प्रस्तुत: है ; इस उदाहरण से यह स्पष्ट
प्रतीत होता है कि तत्कालीन गद्य कितना श्रव्यवस्थित एवं व्याकरण की त्रुटियों से
कप 2 2... तरतख तलाक
“श्री श्री चित्रकोट बाई साहब थी एथुकुवर बाई का बारण गाम मोई
'श्राचारज बाई रसीकेस जीबांच जो श्रपन श्री दली से श्री हुजुर को बी खास रूका
झायो है जो भारों भी पदारबा की सोखबी है नेदली काका जी घेद है ”
....'. यह गद्याँदा राजस्थानी गद्य का है, जो श्रपने स्वरूप में कितना ऊट-पटाँग है ।
जबकि राजस्थानी पद्च में हमें काफी सुन्दर रूप में देखने को मिलता है। जो कुछ
भी हो; इतना तो कहा ही जायगा कि हिन्दी जनपदीय भाषाओं में गद्य का प्रचार
आज से बहुत पहले ही पनप रहा था श्रौर श्राज उसका व्यापक क्षेत्र उसकी जन-
'उपयोगिता का एक बड़ा प्रमाण है ।
राजस्थानी मिश्रित श्रपश्नश कालीन गद्य का लड़खड़ाता हु प्रचलन हम
१३०० वीं झताब्दी के श्रंत तक पाते हैं । इस समय तक श्राकर हिन्दी भाषा का स्वतस्त्र
अ्रस्तित्व अपभ्र श के पाशों से मुक्त होकर बन चुका था | खड़ी बोली, ब्रजभाषा
ब्रज भाषा का गद्य समय एवं श्रवधी भाषा का. काव्योचित सुन्दर प्रयोग भी
१४०० से १८०० तक कबीरदास, सुन्दरदास, सुरदास, तुलसीदास जैसे महा
भक्तिकाल तथा रीतिकाल कवियों ने इस मध्यकाल में करना श्रारम्भ कर दिया था।
फलस्वरूप हिन्दी भाषाओं का स्वतन्त्र एवं सुव्यवस्थित रूप-प्रचार जन-मन पर छाने
लगा । साहित्य की सृष्टि में भाषागतु नैसर्गिता श्राने लगी । कॉव्य-सौन्दर्य श्रपनी
उड़ान धरती की चेतना से श्राकाश की कल्पना तक स्वाभाविक ढंग से भरने लगा ।
कहनें का तात्पयं यह है कि हिन्दी-भाषा-साहित्य का स्वस्थ, उन्नत एवं सुनहरा
कलेवर हमें १४०० वीं संदी से ही द्शित होता है । भ्रतः इस काल को साहित्य का
स्वणुकाल कहने में किसी भी भारतीय साहित्य प्रेमी को कोई श्रापत्ति नहीं है ।
. यह बात॑ निविवाद कही जा सकती है कि भक्तिकाल में भले ही गद्य की
अनेंकानेक पुस्तकें (टीकाएँ, कथाएं तथा सम्वादादि) लिखी गईं, किन्तु फिर भी उस
दर, __.. काल में पद्य की ही प्रधानता रही । सच कहा जाय तो कहना होगा
है मी 'कि न केवल हिन्दी साहित्य ही और न केवल भारतीय साहित्य ही,
' स्थिति... वर संसार की महानतम् साहित्यिकता में भारतीय साहित्य के
' फू; + इस स्वंगकाल में जैसा काव्य सृजन हुभ्रा है, अन्यत्र कम ही हझा
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