श्रृंगार विकास | Shringar Vikas
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
132.38 MB
कुल पष्ठ :
532
श्रेणी :
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No Information available about आचार्य चण्डिकाप्रसाद शुक्ल - Acharya Chandikaprasad Shukla
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसी प्रकार महामत्ति कॉटित्य का उदुघौष है - धर्म शीर अर्थ से सम्पत काम का सेवन करना चाट । नहीं रहना चाट । त््रिंवग को परस्पर समान रहना चाट किसी रक का अतिशय सैवन अपनी तथा अन्य दी की हानि करता है आदि कवि ने थी मर्वादापुरू जम के मु से समान रूप से न्रिवर्गताधनका उपदेश भरत कै लिए दिलवाया है -- है भरत कहीं बर्थ से धरम की या धम से अर्थ की अथवा फिर काम सै धर्म अर्थ दौनाँं की पीड़ित ती नहीं करते ही । बर्थ काम रवं धर्म का सम्यक् काल विभाग करके सैवन ता करते ही नं। पु नै डॉन्ड्यसंयप की कैवल विधा ध्ययन का ही नहीं आपितु सभी अयॉँ अयातृ पुर षपर्धों का साधक बताथा है -- छॉन्द्यां की वश मैं करके तथा मन की संयत करके मनुष्य की अपने सभी प्रयाॉजनी की सिद्ध करना चाहिश 1 बार सभी इॉन्ड्ियाँ के वश मैं रहने पर थी यदि एक थी च्यूत हुई तो उसके साथ मतुष्य की बुद्धि मी च्यूत हो जाती है | दे सुख-साधक पुरूष की चाट कि वह का संयम पहले करे । यहाँ पर थी सिद्धि का अर्थ पुर ही है | १ धर्मार्थाविशेधेन कार्म सैवैत । न निस्सुव स्यातृ । सम वा जिवर्गमस्यौन्या तुबन्धम । की उ्यत्यासैविती च पीढयति । ०० २ । उमौवा प्री कामेन न खिबाधसी ।। कॉच्चिदर्थ च कार्म च धर्म च धन च जयताँ वर । विभज्य काले कालज्ञ सर्वान वरदसेवसै ।। + वा ०० अ्धीण्का० १००1६२-६३ ३ वशेकृत्वैन्ड््य-ग्रार्म संयम्य च मनस्तथा ।. स्वाति संसाधयदथानिधि एवनयीगतस्ततुम ।।. - मं०स्मृ० २1१०० ४ . घ यचैक॑ करती नद्ियमु । तदस्य हरत प्रज्ञा द्तै 11 -मण्स्मृ० रो ६६ ४. त तान्येव ततः सिद्धि पनियच्छाति ।
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