अंहकार | Ahankar

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अलका मुखोपाध्याय - Alka Mukhopadhyay

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आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसीलिए धोडी देर बाद घबडाई हुई सी आकर बोली थी बाबूजी के दराज की चाभी कहाँ है रे नीता ? मुझे तो कही....' हाँ, सुलेखा को यही तरकीब सूझी थी । पल भर में नीता ने माँ की चाल समझ ली, क्योंकि “बाबू जी की चाभी' जैसी कोई चीज इस घर मे है नहीं ? फिर भी नीता ने बनते हुए पूछा, “बाबूजी के दराज की चाभी ? मैंने तो कभी आँख से भी नही देखा है । न जाने बाबूजी कहाँ रखते हैं इस चाल का अन्दाजा सभी को लग गया । इस घर के रहने वाले-सभी। रीता-स्वाती यहाँ तक कि अन्तरालवर्ती यतीन को भी । ऐसी घनघोर परिस्थिति मे यतीन इस बैठक के आस-पास न रहकर क्या बच्चों को लिये बैठा रहेगा ? ऐसा तो हो ही नहीं सकता है । सभी समझ गए पर विभास न समझ सका । उसने सोचा बन्दूक किसी और के हाथ न लगे यही सोचकर ससुर चाभी अपने पास रखते है। अतएव असहिष्णुतापूर्वक बोल उठा, *फोन से पूछिए । घर के बाहर थोड़े ही होगी ' 'ओ अच्छा...” सुलेखा फिर अभिनय करते हुए बोली, *ओ नीता, जल्दी से बाबूज़ी से पूछ तो ले, दराज की चाभी कहाँ...” नीता बोली, “अभी तो फोन किया था.. .बजता ही रहा ! बजता ही रहा ? अभी दफ्तर बन्द हो गया ?' विभास हताश हुआ। सुलेखा और भी आवुल हुई, विश्वस्तभाव से बोली, “इतनी जल्दी बन्द हो गया ? तू फिर से करके तो देख नीता !' विभास को सहसा लगा कि यह चेष्टा ठीक तरह स नहीं की जा रही है । इसमें कुछ कमी है। घढ़ स्वयं गया। बजमुष्टिका में रिसीवर उठाकर कड़कडा कर नम्बरों को डायल कर उधर घंटी बजने से पहले ही हैलो हैलो करने लगा । नहीं, सचमुध ही घंटी बजती रही | विभास ने भयंकर मुँह बनाकर पूछा, “डुप्लीकेट चाभी नहीं है ?' रीता पास आई । वोली, “नहीं । इस घर मे चाभी की डुप्लीकेट नहीं है । सब खो जाती हैं




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