अंहकार | Ahankar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.13 MB
कुल पष्ठ :
127
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अलका मुखोपाध्याय - Alka Mukhopadhyay
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आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसीलिए धोडी देर बाद घबडाई हुई सी आकर बोली थी बाबूजी के दराज की
चाभी कहाँ है रे नीता ? मुझे तो कही....'
हाँ, सुलेखा को यही तरकीब सूझी थी ।
पल भर में नीता ने माँ की चाल समझ ली, क्योंकि “बाबू जी की चाभी'
जैसी कोई चीज इस घर मे है नहीं ? फिर भी नीता ने बनते हुए पूछा, “बाबूजी
के दराज की चाभी ? मैंने तो कभी आँख से भी नही देखा है । न जाने बाबूजी
कहाँ रखते हैं
इस चाल का अन्दाजा सभी को लग गया । इस घर के रहने वाले-सभी।
रीता-स्वाती यहाँ तक कि अन्तरालवर्ती यतीन को भी । ऐसी घनघोर परिस्थिति
मे यतीन इस बैठक के आस-पास न रहकर क्या बच्चों को लिये बैठा रहेगा ?
ऐसा तो हो ही नहीं सकता है ।
सभी समझ गए पर विभास न समझ सका ।
उसने सोचा बन्दूक किसी और के हाथ न लगे यही सोचकर ससुर चाभी
अपने पास रखते है। अतएव असहिष्णुतापूर्वक बोल उठा, *फोन से पूछिए । घर
के बाहर थोड़े ही होगी '
'ओ अच्छा...” सुलेखा फिर अभिनय करते हुए बोली, *ओ नीता, जल्दी
से बाबूज़ी से पूछ तो ले, दराज की चाभी कहाँ...”
नीता बोली, “अभी तो फोन किया था.. .बजता ही रहा !
बजता ही रहा ? अभी दफ्तर बन्द हो गया ?' विभास हताश हुआ।
सुलेखा और भी आवुल हुई, विश्वस्तभाव से बोली, “इतनी जल्दी बन्द हो
गया ? तू फिर से करके तो देख नीता !'
विभास को सहसा लगा कि यह चेष्टा ठीक तरह स नहीं की जा रही है ।
इसमें कुछ कमी है। घढ़ स्वयं गया। बजमुष्टिका में रिसीवर उठाकर कड़कडा
कर नम्बरों को डायल कर उधर घंटी बजने से पहले ही हैलो हैलो करने लगा ।
नहीं, सचमुध ही घंटी बजती रही |
विभास ने भयंकर मुँह बनाकर पूछा, “डुप्लीकेट चाभी नहीं है ?'
रीता पास आई । वोली, “नहीं । इस घर मे चाभी की डुप्लीकेट नहीं है ।
सब खो जाती हैं
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