हर्षवर्द्धन | Harshavardhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत की राजनीतिक श्रवस्था | ११ होता है कि भारत के श्रनेक राजाओं ने उन्हें देश से मार भगाने के लिए उन पर श्राक्रमण किए थे । महाभारत, पुराण, रघुवंश, दृषचरित तथा चंद्र-रचित प्राकृत व्याकरण झ्रादि ग्रंथों में भी हूणों का उल्लेख मिलता है । वे एक खानाबदोश जाति के लोग थे श्और एशिया के घास के मेदानों में निवास करते थे । जीविका की खोज में उन के दो प्रधान दल बाहर निकते, श्रौर वालगा तथा वंज्लु ( श्राक्तस ) नदी की तरेटियों में बस गए. । जो लोग वंज्ु की तरेटी में जा कर बसे वे श्वेत हूण के नाम से प्रतिद्व हुए श्रौर थोड़े ही काल में मध्य-एशिया के अंदर फैल गए । उन्हों ने ४८४ ई० में ईरान को जीत लिया श्रौर काबुल के कुशान राज्य को नष्ट कर दिया । वहाँ से वे भारत के मैदानों में घुस श्राए; । वास्तव में हूणों के दल ने ४४४ ई० के लगभग ही पूर्व की श्रोर बढ़ना प्रारंभ कर दिया था और स्कंदगप्त ने आपने शासन-काल के प्रारंभ में उन को रोका था । ४६४, ई० के 'लैंगभग स्कंदगुप्त को हूखों के एक दूसरे आक्रमण का सामना करना पड़ा था । ईरानी ज्य के पतन ( ४८४ ई० ) के पश्चात्‌ इन बबर हुणों की पूरवोभिमुखी प्रगति को रोकना कठिन प्रतीत हुआ । कुछ काल के श्रनंतर वे टिड्डी दल की भाँति गुप्त-साम्राज्य पर टूट पड़े । उन के नेता तोरमाणु * ने ५.०० ई० के पूव मालवा में श्रपनी प्रभुता स्थापित कर ली किंतु मध्य-मारत में हूणों की सफलता क्षणिक सिद्ध हुई । तथागतगुप्त के पुत्र बालादित्य द्वितीय के प्रयत्न से वे मध्यभारत के बाहर निकाल दिए गए. । संभव हो सकता है कि बालादित्य ही भानुगुप्त नामक राजा रहा हो “जो प्रथ्वी का सवंश्रेष्ठ वीर श्रौर पार्थ के समान शक्तिशाली नरेश” था जिस के साथ सेनापति गोपराज श्रिकिण (एरण) गया श्रौर “एक प्रसिद्ध युद्ध” में लड़कर ५१० ई० के कुछ पहले मर गया । भानुणुप्त ने जिस हूण- राज को पराजित किया वह संभवत: मिहिरकुल रहा होगा जो एक रक्तपिपासु श्रत्याचारी दर उपननबयनन न न ली पा न बिन, १ झजयत्‌ जट्टीं हूसान्‌ । २ तोरमाण के चाँदी के सिक्कों पर जो तारीख सिलंती है वह +२ है । इस का अब्द ज्ञात है । अनुमान किया जाता है कि इसी का प्रारंभ लगभग ४४८ ईं० में हुझा होगा, इस के झनुसार सिक्कों की तारीख श०० ई० ठहरती है। देखिए, स्मिथ, “झर्ली दिस्टी श्राफ़ इंडिया,' एष्ठ ३३१ 3 रायचौघुरी, 'पेलिटिकल हिस्टी झाफ़ एंशंट इंडिया, एष्ठ ४०२ । जायसवाल महोदय के झनुसार, जिन का कथन 'मंजुश्नीमूलकरप' पर श्रवलंबित है, हुणों का आक्रमण गुप्त-साम्राज्य के पतन का परिणाम था, न कि उसका कारण । उन का कथन है कि बुद्धगुप्त की शत्यु के उपरांत गुप्तबंश वाले दे दलों में विभक्त हो गए । भानुगुप्त मालवा में राउप करता था घर तथागतगुप्त ( बालादित्य द्वितीय का पूरवगामी ) मगधघ में । इस फूट के कारण तारमाण का तुरंत श्राविभाव हुआ । तारमाण श्र भानुगुप्त में झरिकिण (एरण) के युद्धस्थल पर ५१२ है० के लगभग युद्ध हुआ जिस के कारण मालवा का पतन हुआ (देखिए, 'इंपीरियल हिस्टी छाफ इंडिया' प्ष्ठ ३६) । तारमाण बंगाल की शोर रवाना हुआ और बालादित्य के बंगाल चले जाने के लिए विवश किया । उस ने बालादित्य के पुत्र




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