रसरतन | Rasaratan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
251 MB
कुल पष्ठ :
511
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७).
नायक स्वस्लब्घ शपनी प्रेयसी को छूँढ़ता हुश्रा जब मानसरोवर के तट पर रात
में विश्राम कर रहा था तत्र उव शी की सलाह से--क्रीड़ाकम्लों के साथ खिलवाड़
करती हुई श्रप्सराँ, ब्रह्मकुंड नामक स्थान पर वास करती हुई “कल्पलता”
के प्रति स्नेहाद्र दोकर--युवराज को उसके पास ले गईं । यह कल्पलता इंद्रकोप
से शापग्रस्त होकर स्वर्गच्युत कर दी गईं थी । उसे प्थ्वीवास का दंड मिला
था। क्रौड़ा करती हुई श्रप्सराएँ श्राकाशमार्ग से, सोए शूरसेन को ब्रह्मकुंड,
कल्पलता के पास, ले गईं । वहाँ कुमार का प्रथम विवाह कल्पलता के साथ
श्रकस्मात् हो जाता है । नायिका भी देवयोनि - की शापश्रष्ट श्रप्सरा ही है।
कदाचित् लोककथा की वह प्रतिध्वनि भी पुरातनयुग से ही भारत के प्रेमाख्यान को
में ग्रहीत हो चुकी थी जिसके श्रनुसार स्वर्गच्युत या प्रथ्वी पर श्रागत झप्सराओं
श्रौर गंघव श्रादि की पुत्रियों का विवाह, घरती के झति सुंदर मत्यों के साथ
रचाया जाता था । कभी कभी म्यंश्रमत्य॑ प्रेमीप्रेमिकाश्रों के मिलन मैं
. गंघर्व, विद्याघर श्रादि भी सहायक रूप से इन कथाओं में वर्णित होते रहे हैं।
बहुधघा ये झ्रपदेवता हंस, शुक श्रादि का रूप भी घारणुकर उपस्थित हुआ्रा करते
थे | संमवतः झ्पने बर्ग या समाज की कन्या के स्वगंपतित होने से ढुखित
दोकर वे सहानुभूतिवश, सुंदर नर से उनका मिलन कराते थे । कभी कभी मत्य
युगलों की सुंदर श्रौर अनुपम नोड़ी को मिलाने में उन्हें परम श्रानंद प्राप्त हुआ
करता था । गुणसौंदयंशाली नरनारियों की युगल जोड़ी मिलाना, संभवतः, वे
परम घर्म का काम मानते थे । इस प्रकार के सेलनपरक दूतकर्म करनेवारलों के
_. शनेक स्वरूप--विभिन्न लोकाश्रित मारतीय प्रेमाख्यानकों में श्ाजतक भी मिलते
चले श्रा रहे हैं । राखो में-विशेष रूप से पृथ्वीराज के विविघ विवाहवरार्नों के
_. अंतर्गत--ऐसे प्रणयसहायंक श्रौर परिणयसंपादक पात्रों का वर्शन मिलता है ।
.......... उपयुक्त शतपथ ब्राह्मण की कथा में भी सरोवरस्थ हंसरूपघारी गंघव-
_. कन्याओं या झप्सरिकाओओं के जलविहार का वर्सन है । इसमें उवशी की...
...क्रीड़ासइचरी सखियाँ हंस के रूप मैं जलविह्ार करती वर्णित हुई हैं । इसमें...
आश्चर्य श्रौर श्रसंभावना न देखनी चाहिए कि देवयोनि के गंघब किन्नर,
_.... विद्याचर श्र श्रप्सरां के सहाय से प्रणयगाथा के विकास श्रौर कार्य... |
संपादन में योग मिलता रहा है।... हा
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न फेम नेषघचरित में लोककथा के उपादान न पे कर
संस्कृत मद्दाकार्व्यों मैं दंडी के प्रबंधमद्दाकाव्य की परिभाषा का श्रनुसरण
..... करनेवाले मदत्वशाली . मददाकार्व्यों मैं नैषघचरित. का. स्थान झप्रतिमे है। थी दर
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