कसायपपाहुंड | Kasaya Pahudam

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Kasaya Pahudam  by पं. कैलाशचंद्र शास्त्री - Pt. Kailashchandra Shastriश्री फूलचंद्र - Shri Fulchandra

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श्री फूलचंद्र - Shri Fulchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( रैश ) पदनिप्षेप--सुजगारविशेषको पदनिक्षेप कहते हैं। इस अधिकारमें उत्कृष्ट वृद्धि, उत्क्प हानि, जघन्य ब्रृद्धि झौर जघन्य हानि तथा अवस्थितपद इन सबका शश्रय लेकर संमुत्कीतना, स्वामित्व शरीर अत्पबहुत्व इन तीन अधिकारोके द्वारा मूल और उत्तरप्रकृतियो के प्रदेशसत्कर्मका विचार किया गया है । छृद्धि--पदनिक्षेपविशेषपको ग्ृद्धि कहते हैं। इस झधिकारमें यथासम्भव ब्रद्धि और हानिके श्रवान्तर भेदो तथा यथासम्भव अवक्तच्यविभक्ति श्औौर अवस्थितविभक्तिका झाश्रय लेकर समुस्कीलना, स्वामित्व, एक जीवकी श्पेक्षा काल, एक जीबकी छापेक्षा श्वन्तर, नाना जीबोंकी अपेक्षा भड्विचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पशेन, काल, अन्तर, भाव श्औौर 'ल्पबहुत्व इन तेरह 'अधिकारोंके द्वारा मूल श्रौर उत्तर श्रकृतियोंके प्रदेशसत्कर्मका विचार किया गया है । सत्कमेस्थान--मूंत आर उत्तर प्रकृतियो के प्रदेशसत्कर्मस्थान कितने हैं इसका निर्देश करते हुए मूलमें बतलाया हैं कि उत्कृष्ट प्रदेशसत्कमैका जिस प्रकार कथन किया है. उसी प्रकार प्रदेशसत्कर्मस्थानोका भी कथन कर लेना चाहिये । फिर भी विशेषताका निर्देश करते हुए प्रकृतमे प्रूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व ये तीन अधिकार उपयोगी बतलाये हैं । मीना भरीनचूलिका पहले उत्कष्ट, झलुत्कूष्, जघन्य श्र अजघन्य प्रदेशविभक्तिका विस्तारके साथ विचार करते समय यह बतला आये हैं कि जा गुशितक्माशिक जीव उत्क्पण द्वारा अधिकसे श्धिक प्रदेशोका सब्चय करता हैं उसके उन्कृप्ट प्रदेशविभक्ति होती है और जो क्षपितकर्माशिक जीव स्पकर्पण द्वारा क्मत्रदेशों को कमसे कम कर देता है उसके जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है, इसलिए सहाँपर यह प्रश्न उठता *ै कि क्या सब कर्मपरमाणुओका उत्कपण या अपकर्षण होना सम्भव है, बस इसी प्रश्नका समाधान करनेकें लिए यह भीनाभकीन नासक चूलिका अधिकार श्रलगसे कहा गया है । साथ ही इसमें संक्रमण योर उदयकी अपेक्षा भी इसका विचार किया गया है। इस सवश फिचार यहाँपर चार अधिकारोका आश्रय लेकर किया गया है । वे अधिकार ये है-- समुत्वीर्तना, प्ररूपणा, स्वामिस्त्र छीर अल्पबढुत्व । समुत्कीतेना---इस उधिकारमे अपकपपण, उत्कपण, संक्रमण और च्दयसे भीन और अभीन स्थिनिवाल कमपरमारु ओके अस्तित्वकी सूचना मात्र दी गई है । प्रकृतमे भीन शब्दका अर्थ रहित श्र अमीन शब्दका अथे सहित है । तदनुसार जिन कम परमाणुओंका 'पक्पेण, उत्कपण, संक्रमण और उदय होना सम्भव नहीं है वे अपकप, उत्कर्पण, संक्रमण 'छर उदयसे मीन स्थितिवाले कमपरसाणु माने गये हैं । और जिन कर्मपरम।णुओं के ये अपकपंण श्रादि सम्भव है वे इनसे अभ्दीन स्थितिवाले कमपरमाणु माने गये हैं । प्ररुपणा--इस अधिकारम अपकप्पेण आदिसे भोन आर अनीन स्थितिवाले कमंपरमाणु कौन है इसका विस्तारके साथ विचार किया गया है । उसमें भी सर्वप्रथम अपकप्पणकी अपेक्षा विचार करते हुए बतलाया गया है कि उदयावलिके भीतर स्थित जितने कमंपरमाणु हैं वे सब झपक्पेणसे भ्ीनस्थितिवाले 'झौर शेप सब क्मपरमाणु अपकपपणसे अभीन स्थितिवाले है । तात्पये यह हैं कि उदयावलिके भीतर स्थित कर्मपरमाणु्ओोंका अपकपेश न होकर वे क्रमसे यथाबस्थित रहते हुए निर्जेंयकों प्राप्त होते है, इसलिए वे अपकर्पणके अयोग्य होनेके कारण अपकणुसे भदीन




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