हिमर्शल | Himarshal

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Himarshal by भगवत शरण - Bhagvat Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिमर्शल तंदुल ने धीरे से कहा--सम्नाट ! पृथ्वी ग्रह की अब दिशेषता यह है कि वहाँ कोई सत्य नही वोलता । एक-दूसरे पर कोई विश्वास नहीं करता । सम्बन्ध इसलिए चलते रहते हैं कि उनसे किसी को कोई लगाव नहीं है। वहाँ किसी झाँख में श्रपनापन नही है । किसी मन में प्यार नहीं है 1 नातंदुल ! ये--ये क्या कह रहे हो? क्या कह रहे हो तुम ? क्या ऐसा भी कोई ग्रह हमारी आकाश गंगा में है? नही, हम यह नहीं मान सकते । सम्राट ने सिंहासन से उठते हुये कहा । तंदुल भी उठते हुए वोला--इसीलिये, सम्राट ! मैं कुछ कहना नहीं चाहता था । यदि पृथ्वी ग्रह पर थी में यह कहता तो कोई विश्वास नेहीं करता । सच को कोई सुनना, समभना या मानना मही चाहता । सब एक भुलावे श्रौर दिखावे की जिन्दगी जी रहे हैं, सम्राट ! जातुम सच कह रहे हो, तंदुल -भ्रापके प्यार का मैं भू ठ वोलकर तिरस्कार नहीं कर सकता । मै पृथ्वी ग्रह का निवासी अवश्य हूँ किन्तु सम्य मानव के ससार से सदा देर रहा हूँ, इसलिए मुक्ते उनके प्रगतिशील सस्कारो की धरोहर नहीं मिली । --मुके तो श्रमी भी विश्वास नही हो रहा है । सम्राट ने तंदुल के के पर हाथ रखते हुए कहा ! --प्राप सच कह रहे है, सम्राट ! ऐसे श्रविश्वासी ग्रह की कल्पना भला कौन कर सकता है किन्तु यह सत्य है, परम सत्य 1 मेरे प्रथ्वी ग्रह पर धघरती विभिन्न मुल्कों के नाम से जानी जाती है । पानी शरीर पहाड़ों ने उन सुल्कों की सीमा बना दी है ! जहाँ ऐसी कोई सीमा नही है वहाँ वजर जमीन के लिए एक-दूसरे देश के सिपाहियों का खुन बहाने में उन्हे प्रसश्नता का अनुभव होता है। जहाँ सीमा है, वहाँ उसका विस्तार करना चाहते है वे लोग । कोई मुल्क, किसी मुल्क से सच नहीं वोलता । कोई देश, दूसरे देश की प्रगति नहीं चाहता ! पड़ोसी, पड़ोसी के सुख से जलता है । देश, देश की प्रगति से कुढता है । तंदुल भावावेश में वोले जा रहा था कि सम्राट ने यीच में टोकते हुए कहा-बस, तंदुल ! बस । हम ऐसे ग्रह के बारे में जानना भी पाप




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