हौलदार | Hauladar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
363
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हौलदार ७
मेरे बनना 1 ** ”'
बात यहीं नहीं थम गई थी । नरूली ने डँंगरसिंह की भौजियों को
भी यह बात बता दी थी, और सावधाने कर दिया था--“श्रपने खसमों
को लाम मे भर्ती न होने देता ; नही तो तुम्हारा देवरिया इस श्रसमंजस
' मे पढ़ जाएगा, कि पहले किस भौजी का टेकवा बने ? ”
श्ौर खिमुली-भिमुली भौजियों के हाथ में जैसे वरमास्त्र प्रा गया
था । सामने पड़ते ही छेड़ देतीं--“ठेकूवा बनोगे, देवरिया ?””
आर डँगरसिह तेज मॉजे से कटी पतँग-सा मँह देखता रह जाता ।
एक दिन उसने चिढ़कर कह ही दिया था--“मेज के तो देखो, श्रपने
खसमों को लाम में, कही सचमुच मेरी जरूरत न पड़ जाए ?”
भौजियाँ इस श्रप्रत्याशित चोट से तिलमिला उठी थी श्रौर डंगररसिह
नाक पर श्रंगुली फे रता हुआ, बह गाते-गाते परे चला गया था---
“बानर-नों भोई,
कलेजी में मारी गोछें, लाम-कसी गोई!
सुखड़ी ले 'से-चे' कुछ,
सन माँ छो होई ! ***””
खिंमुली भौजी तो चुप रह गई थी, पर भिमुली भौजी का काला
चरेवा टूट जाए ** उसके काँटे नहीं कड़े । दूसरे दिन ही बोली--'छुम
तो ढेकूवा बनने की लालसा में ही घुटने टेक दोगे, देवरिया ! पराया
पिरेम देख-देखकर, पीले पड़ते रहोगे, जलते रहोगे उस लकड़ी की तरह,
जो चघुँग्रा दे-देकर बुझ जाती है'' झाँच तुमसें कहाँ ? तुम्हारी उमर के
दो-दो बच्चों की च्याँ-म्यॉँ सुन रहे हैं, पर तुमसे श्रभी जोरू के नाम पर,
जोरू की लटी को फुन्ना भी नहीं लाया गया । छिः, छिप, मद होकर, पराई
भे से दुहना चाहते हो ? नरूली का रूप बहुत रुचता है ? ** पर, देवर,
१. कलेजे में पलटन की-सी गोली मार गया
है तू ! ''सुंह से तो
सैं तुझे 'ला-ना' कहती हूँ, पर सन में मेरे 'हाँ' ही है
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