हौलदार | Hauladar

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Hauladar by शैलेश मटियानी - Shailesh Matiyani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हौलदार ७ मेरे बनना 1 ** ”' बात यहीं नहीं थम गई थी । नरूली ने डँंगरसिंह की भौजियों को भी यह बात बता दी थी, और सावधाने कर दिया था--“श्रपने खसमों को लाम मे भर्ती न होने देता ; नही तो तुम्हारा देवरिया इस श्रसमंजस ' मे पढ़ जाएगा, कि पहले किस भौजी का टेकवा बने ? ” श्ौर खिमुली-भिमुली भौजियों के हाथ में जैसे वरमास्त्र प्रा गया था । सामने पड़ते ही छेड़ देतीं--“ठेकूवा बनोगे, देवरिया ?”” आर डँगरसिह तेज मॉजे से कटी पतँग-सा मँह देखता रह जाता । एक दिन उसने चिढ़कर कह ही दिया था--“मेज के तो देखो, श्रपने खसमों को लाम में, कही सचमुच मेरी जरूरत न पड़ जाए ?” भौजियाँ इस श्रप्रत्याशित चोट से तिलमिला उठी थी श्रौर डंगररसिह नाक पर श्रंगुली फे रता हुआ, बह गाते-गाते परे चला गया था--- “बानर-नों भोई, कलेजी में मारी गोछें, लाम-कसी गोई! सुखड़ी ले 'से-चे' कुछ, सन माँ छो होई ! ***”” खिंमुली भौजी तो चुप रह गई थी, पर भिमुली भौजी का काला चरेवा टूट जाए ** उसके काँटे नहीं कड़े । दूसरे दिन ही बोली--'छुम तो ढेकूवा बनने की लालसा में ही घुटने टेक दोगे, देवरिया ! पराया पिरेम देख-देखकर, पीले पड़ते रहोगे, जलते रहोगे उस लकड़ी की तरह, जो चघुँग्रा दे-देकर बुझ जाती है'' झाँच तुमसें कहाँ ? तुम्हारी उमर के दो-दो बच्चों की च्याँ-म्यॉँ सुन रहे हैं, पर तुमसे श्रभी जोरू के नाम पर, जोरू की लटी को फुन्ना भी नहीं लाया गया । छिः, छिप, मद होकर, पराई भे से दुहना चाहते हो ? नरूली का रूप बहुत रुचता है ? ** पर, देवर, १. कलेजे में पलटन की-सी गोली मार गया है तू ! ''सुंह से तो सैं तुझे 'ला-ना' कहती हूँ, पर सन में मेरे 'हाँ' ही है




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