हिंदी वीरकाव्य | Hindi Veerakavy

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Hindi Veerakavy by टीकमसिंह तोमर - Teekamsingh Tomar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० दिंदी वीरकाब्य अन्य प्रदेश तथा दक्षिण में एक बार नहीं श्रनेक बार युद्धकरने पड़े । अंत में वह एक ऐसे साम्रा- ज्य की स्थापना करने में सफल इु्रा जो उस समय विस्तार, शक्ति एवं वैमव की दृष्टि से संपूर्ण संसार में अनुपम था | अकबर की मृत्यु के उपरांत जहाँगीर सिंहासनारूढ़ हुआ । उसके गद्दी पर बैठने के कुछ समय के उपरांत शाहजादा ,खुसरो ने विद्रोह किया जो पकड़कर बंदीय्ह में डाल दिया गया | श्रंत में उसकी मृत्यु हो गई । कंघार का घेरा, मेवाड़ के द्वारा अघीनता स्वीकार करना; दक्षिण के युद्ध, तथा काँगड़ा की विजय श्रादि इसके शासन की प्रमुख घटनाएं हैं । साथ ही जहाँगीर श्र यूरजहदं का विवाह, शाहजहां तथा महाबत खां के विद्रोह भी विशेष उल्लेखनीय हैं, क्योंकि इन घटनाश्ों का प्रभाव संपूर्ण साम्राज्य पर पड़ा था । जहाँगीर ने भी अकबर की नीति का श्नुकरण करते हुए साम्राज्य के ऐश्वयं श्र वैभव को बढ़ाने की सफल चेष्टा की थी । अंत में र८ श्रक्तूबर; १६२७ ई० को उतका देहांत हो गया 1 जहाँगीर के पश्चात्‌ उसका पुत्र शाहजहां विंदासनारूढ़ हुआ । इसके शासन-काल में वीर सिंह बुंदेला के (पुत्र जुकार सिंह ने दो बार विद्रोह किया । वह्द अंत में मार डाला गया । खां जहां लोदी ने भी सिर उठाया, जिसके फलस्वरूप उसका सिर काट डाला गया । शाइजह्दां को पुतंगालवासियों से भी कई युद्ध करने पड़े ( १९३१-३२ ई० ) । उसे दक्षिण में भी कई लड़ाइयां करनी पड़ीं जिनमें सम्राट के तृतीय पुत्र श्रौरंगज़ेब ने बड़ी वीरता एवं काय-पढुता का परिचय दिया । इसके राज्य की अन्य उल्लेखनीय घटना कंघार-युद्ध संबंधी है जहाँ इसने तीन बार सेनाएं भेजी । अंतिम तृतीय युद्ध में इसे पराजित होना पड़ा । शाहजहां के शाहजादों में १६५८ ई० में उत्तराधिकार-युद्ध हुआ जिनमें विजयी होकर औरंगजेब सिंहासनारूद़ हुआ । उसने झपने निकटवर्ती सभी संबंधियों की इृत्या करवा दी शऔर मयूर सिंद्ासन तथा ताज के निर्माणुकर्ता श्रपने पिता शाहजहां को श्रागरे के दुग में बंदी बना दिया, जहां पर २१ जनवरी, १६६६ ई० को उसका देहावसान दो गया । औरंगज़ेब ने सम्राट बनते ही सुगुल साम्राज्य की झकबर के समय से प्रचलित होनेवाली नीवि में एकदम परिवतन कर दिया । वह हिंदुद्मों के प्रति करता का व्यवद्दार करने लगा । परिणाम यह हुआ कि संपूर देश में क्रांति श्रौर विद्रोह की ज्वाला 'घघकने लगी । हिंदू ; जो लगभग एक शताब्दी सें सुग़ल साम्राज्य के स्तंभ थे, श्र, बन गए । अतः दक्षिण में मराठा साम्राज्य, राजपूताना में जोघपुर, मेवाड़; मथुरा के झ्रास-पार' के जाट तथा सतनामी एवं बंदेल- खंड में बुंदेला विद्रोह करने लगे । साथ ही सिंक्खों ने भी स्वतंत्रता का भकंडा फहराना श्रारंभ कर दिया!। यही नहीं, सुन्नी सुसज्लमान होने के कारण शरंगज़ेब दक्षिण के शीया राज्यों की स्वतंत्रता का शपदरण करने के लिए. तैयार हो गया | श्रौरं गड़ोब का्समस्त जीवन उक्त शक्तियों से युद्ध करने में ही व्यतीत हुभ्रा । अंत में दक्षिण के मराठों से युद्ध करते हुए २० फरवरी, १७०७ ईं० को. तरंगज़ेब की मृत्यु हो गई। शऔरंगज़ेब की नीति के कारण सुग़ल राज्य की दशा जीयु-शीर्ण हो गई थी । कहीं पर भी . ... ' ढा१ इंश्वरीप्रसाद : ए शाट ' हिस्ट्री अबू सुस्लिम रूल इन इंडिया, प०. ३१६-६४७ कब्रिज हिस्ट्री-अवू इंडिया, भाग ४, ए० ७०-३१८




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