नई तालीम | Nai Talim

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Nai Talim by देवीप्रसाद मनमोहन - Deviprasad Manmohan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ढ नई तासीम के प्रयोग काच के बर्तनों में किस श्रवार किये जाति है । वह वात मुझे याद भा गयी । बच्चे जब पं के सिंगे चले गयें तो मशोक का श्रश्त सबके सामने रखा और बताया कि वीज बसे भरुगते हे, यह प्रत्यक्ष भावों से देखेंगे । पाठशाला में कुछ काच के ग्लास हैं। मुनमें से मेक मगाया। ग्लास ५ इच भूचा था । मेक टुकड़ा साफ स्याही-सौखते (ब्लादिंग कागज) का ३” > १०” का काटा । बालकों से पूछा कि वे कौन-कौन से बीज गुगते हुआ देखना चाहेंगे । मुन्होने कहा-ज्वार और गेहू 1 मेने जुसमें घमिया और जोड दिया । ज्वार तो शाला में था, वयोंकि बोने के लि रखा गया था । असोक दोडकर अपने धर से गेहू ले आाया गौर येक बालक घनिये के कुछ दाने 2 होशियारी के साथ मेने तीनों प्रकार के भ-४५, ६-६ बीज ग्लास की दीवार गौर स्पाही- सोखते के बीच में फलाकर रख दियें (ब्लाटिंग कागज को गोल «करके ग्लास की दीवार के साथ-साथ चिंपका-सा दिया था । देखिये साथ का चित्र) बीज सजाने के बाद ब्लािंग को मिगो दिया और ग्लास में थोहा पानी भी डाल दिया (लगमग भाधा इंच) जिससे कि कागज भीगा रहे भौर बीजों को सीलत मिलती रहे । बालक यह तमाशा देख कर मसमजस में पे ना रहे थे 1 मुन्होने सोचा था कि गुरुजी ने बीज रखे कि फोरन मुनमें से पौधे फूट निकलेगे । जब मेने ग्लास स्टूल पर रखा तो अशोक भुसमें जाखें गाडकर कहने लगा-”गुरुजी कुछ तो नहीं हुआ ।” ” अरे भाई मितनी जहदी नहीं होगा । शुस्ते तो समय लगेगा ।” -में युन्हे जिसका बिलकुल भी अत्दाज नही देना चाहता था वि वे कितने दिन में अकुरित होगे मोर कितेंने दिन में पीषे वर्नेंगे । वे प्रइति के जिस चमत्कार का पयों मे स्वय ही शोध करें । _ सुबह की शाला समाप्त हुई, बच्चे सोजन के लिमे चले गये । दोपहर में फिर दो बजे बे धुरू हुआ । कक्षा के सारे बालक गये भुसी ग्लास के पाप्त । सबने वडी निराशा से कहा, “कुछ भी तो नही हुआ ।” अुस दिन तो कुछ नही हुआ। निराशा और मी बढ गयी । किन्तु अशोक दौड़ा दौडा भाया गौर कहने लगा “गुरुजी बीज मोटे हो गये ।” हमने सूखे बीजों के साथ तुसना की तो देखा वीज फूल गये है । कुछ बालकों को लगा कि हाँ, कुछ तो हो रहा है । दो-दो सीन-सीन घण्टे में बालक जाते और ग्लास में कुछ परिवर्तन हुआ या नहीं यह देखते । तीसरे दिन किसी-किसी को दीखा कि ज्वार के दानो के मेक तरफ सफेद-सफेद कुछ रूई जैसा भूगा है । चोधे दिन ज्वार में से अकुर निकते । मेक गाकादा की ओर थीर भेत्र घरती की ओर | बडी चर्चा चली, नन्हें-नन्हें चंज्ञा निको में । जैक पौधे के पत्ते,और डठल बनेंगा । ओर शेक जडें । गेहू में चौथे दिन पहला परिवर्तन दीखा । धनियो में पाचवे दिन भी कुछ नही हुआ था । बालकों ने खूब प्रश्न पूछे । दस दिन में गेहू व ज़्वार के तो अच्छे पौधे ही बन गये थे । घनियां भी अुगने लगा था । बच्चो में जो जिज्ञासा पंदा हुआ भुसका कोओ ठिकाना नहीं । अलग-अलग वोज अलंग-भलगं समय लेते हूं, यो सेते हूं जित्यादि वडे बड़े वंज्ञानिक प्रदनों पर बहस मुबा- हसा हुआ । अगर हमेशा सचेत रहा जाय और ाखें खुली रखी जाय मौर साथ-साथ अध्ययन करते रहे तो बाउको को सामान्य विज्ञान खेलते खेलते सिखाया जा सकता है । “प्रयोग शाला” न रहे तो भी साधारण बस्तुओ का सुन्दर सुपयोग करके भी काम चलाया जा सकता है ।




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