जिनेन्द्र महावीर | Jinendra Mahaveer
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)से वह “वर्ग से तुम्हारे गर्भ में श्राया है, (१४. रत्न-राशि देखने से बह
श्रप्ठ गुगों का स्त्रामी होगा, (१४) नाग भवन से वह मुख्य तीथे
होंग', : १६) निधु मार्नि देखने से वह तप रूपी भ्रर्ति से कमें रूपी
इ धन को भप्म करने वाला बनेगा । तत्र नौ मास, सात दिन के परचातु
चेत्र युवला अ्यादणी को श्रयमा योग में तदनुमार सोमवार, २७ माचे
५२६ इ० पु० रानी त्रियला को कोख से भ्रनुपम तेजवत पृत्र का प्रसब
हुआ । नारकीय यत्रणात्मों से सपाइत प्राणियों ने सुख-चेन को सांस
ली । 'कृण्डलपुर' में हर्षोल्लास के साथ नवजात राजकुमार का जन्मोत्सक
मनाया गया ' पुज्यपाद की 'निर्वाणिभक्ति' में वद्धमान के जन्म का
उव्लेत इस पंक्ति मं है: -
''रिद्धाथनपतित्रतयों भारतवास्ये विदेट्कुण्डपुरे''
जन्प्रजात श्रवधिज्ञानो भगवान महावीर का दारीर श्रत्यन्त सुन्दर
था, गुगंघण्य था । मधुवेर्टितिवाणी, श्रतुलित बलवान महात्ीर के
गीर मं दांख, चक्र, कमल, यव, धनुष ग्रादि १००८ थुभ लक्षण थे । श्राठ
ब्पं को ग्रत्पा में ही. उन्दोंने हिसा, भ्रसत्य, चोरी, कृणील
ग्रौर परिएट का पूर्णतः परिस्याग कर दिया । जब उन्हें कलाचार्य के
यहाँ शिक्षाथ मैजा गया तो इद्र मनुपप 7 छवेण में सलाचाय के
समय उपस्थित हाए से रायीर ने इनके सभी प्रदनों कल समीचीन उत्तर
देवर वद्ध । इन्द्र । की णंकाय्रों का सम्टक समाधान किया जिससे कला
चाब भा य्रारवर्यानत््रित रह गये । बाचाय को बतलाया कि यह
बालक भ्रप्रतिय सेघालील है, परम ज्ञान-सम्पन्न है। इसे साधारण
विषरों का ज्ञान देना भ्रवांछिनेय है ' बह बाल्यावस्था से ही निर्मीक,
ललिएय शीर ब्रोजस्टी थे । उनकी निर्भीकता ब्रौर परोपकार की चर्चा
इस्प्रलोतर ग॑ भी होती थी ।
स्वश्ाव्यीच सके प्लाच्च च्तालण: - नवजात थियु का नाम
'वर्घमान' रखा गया वयोंकि जन्म से राजा सिद्धाधथं का वभव, यश,
प्रताप, पराक्रम वद्धि पाने लगा । उनका यह नाम भी श्रतिलोकरप्रिय है
उनका दूसरा नाम 'सन्मति' रखा गया । कुमार वद्ध मान अति
मेघात्री थे । एक वार संजय श्ौर विजप नामक दो ऋद्धिघारक मुनि
जत्र महावीर के पास ब्रपनी कतिपय तत्व-विषयक डॉकाया का समा-
धान प्राप्त करने झाये तो दूर से ही-वद्ध मान के दर्योन मात्र से ट्टी
«है
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