इन्द्र विद्यावाचस्पति | Indra Vidyavachaspati

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Indra Vidyavachaspati by विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak

Add Infomation AboutVijayendra Snatak

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
साहित्य सेवा और पत्रकारिता / १५ प्रशंसनीय था, पर छापे कैसे । गुरूकुलत के एक छात्र का लिखा लेख, वह भी एक अध्यापक के ग्रन्थों की आलोचना के लिए | संपादक जी को लेख पसंद आ गया था अत: परामर्श के बाद निश्चय किया गया कि लेख के साथ उनका नाम नहीं रहेगा | साथ ही यह भी निश्चय हुआ कि यह बात सर्वथा गुप्त रखी जाएगी कि यह लेख किसका है। प्रेस वालों को सावधान कर दिया जाए कि वे रहस्योद्घाटन नहीं होने देंगे । मैंने अपना उपनाम उस लेख के लिए 'था' रखा । सभी लोगों ने 'था' के लिए अलग-अलग कल्पनायें की । आर्य समाज में भी ऐसे विद्वान नो थे जो सर्वथा कट्टरपंथी होने के कारण उस लेख के लिए लेखक समझे जा सकते थे परन्तु वे संस्कृत के विद्वान थे। नवीन शैली के हिन्दी लेखकों में नहीं थे । लोग इसी चक्कर में पड़कर यह नहीं समझ सके कि “था' के आवरण में छिपा व्यक्ति कौन था ।” पत्रकारिता के संबंध में उनका यह लेख सबसे पहला था तो भी उसे (इन्द्र को) यह संतोषप्रद अनुभव हुआ कि मैं कुछ बन स्ूँ या न बन सकूं किन्तु लेखक अवश्य बन सकता हूँ । इसी भावना से प्रेरित होकर जब इन्द्र जी ने अपनी छात्रावस्था में उच्च लेखक समाज में पढ़ने के लिए अनेक निबंध लिखे । इस प्रकार निरंतर आपकी लेखनी परिष्कृत होती चली गई । प्रातक्काल उठते ही दो-चार श्लोक नित्य लिखने को उन्होंने अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया। हिन्दी में ही नहीं संस्कृत में भी वे लेख लिखा करते थे । संस्कृत के प्रति उनका यह अनुराग इतना ज्यादा बढ़ गया कि उन्होंन अपनी डायरी संस्कृत में लिखनी प्रारंभ कर दी । सन्‌ ६१९०२ से १९११ तक का समय इन्द्र जी के शिक्षा काल का है। यह समय आर्य समाज और इन्द्र जी के जीवन में विशेष जायति का काल था । इसी समय राजनीतिक श्िंतिज पर बंग-भंग की महत्त्वपूर्ण घटना हुई । अरंविद घोष को कारावास का दंड मिला । सूरत में कांग्रेस विभक्त हुई और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को मांडले जेल में भेजा गया। इन्द्र जी हृदय से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुयायी थे । गुरूकुल के सम्बन्ध में भी उस समय ब्रिटिश शासकों का विचार अनुकूल नहीं था । उत्तर प्रदेश के शासकों में जो अंग्रेज़ थे वे लोग इसे राजद्रौह करने वाली संस्था समझते थे । इन्द्र जी ने गुरूकुल में आने वाले अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन का स्वयं नेतृत्व भी किया था किन्तु उसी समय इंगलैंड में मजदूर दल के नेता रेमजे मेकडोनाल्ड ने गुरूकुल के सम्बंध में अपने विचारों को इस प्रकार प्रकट किया हैं, “भारत के राजाओ के संबंध में कुछ शोड़ा सा भी पढ़ा है उन लोगों ने गुरूकुल का नाम अवश्य सुना होगा । यहाँ समाजियों के बालक शिक्षा प्रहण करते है । आर्यो की भावना ओर सिद्धान्तों का यह अत्यंत उत्कट मूर्त रूप हैं । इस उन्नतिशील धार्मिक संस्था और आर्य समाज के विषय में जितना भी संदेह किया जाता है वे सब गुरूकुल पर थोप दिये जाते हे।” इसलिए इस संस्था पर शासन की तिरछी नजर है । पुलिस




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now