वीर - पंच - रत्न | Veer Panch Ratn

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Veer Panch Ratn by मूलचन्द जैन - Moolachand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) दो राज्य भरत को तथा श्री राम को -बनवास,- की पूर्ण वचन पूर्ति दपति ने हृदय उल्लास 9 श्री राम ज़ी ने हुक्म पिता . का , किया स्वीकार, वनवास के जाने को हये. शीघ्रतः तेयार ॥ श्री जानकी भी साथ गईं थी, हृदय उमंग, तर श्रातृ भक्त लच्मण जी भी गये थे संग ॥१९६॥ लंकेश था रावण सकत्त. विद्याघरों का इंश, वल, शक्ति यक्त था असंख्य सेन्यका अधीश ।) भारत के भपगण समस्त उस के थे अधीन चिक्रम, प्रताप उसका था संसार में अचीश ॥ होकर विन देव भी मस्तक थे भुकाते, - बलवीर, शूरवीर हुक्म सब ही वजाते ॥१७॥ छल, वल तथा कौशल से गया जानकी ले हर, एवं उसे लंका में रखा पूर्ण -यल्न कर | करके अनेक यल उसे चाहा डिगाना, सालच, प्रलोमनों में उसे चाहा फॉसाना ॥ .




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