जैनसिद्धान्त संग्रह | Jainsiddhant Sangrah

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Jainsiddhant Sangrah by मूलचन्द जैन - Moolachand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जेनसिद्धांतसंग्रह.। [ १३१ ` बल्तावरर्त पाठामें चैत्र सुदी ११, रामचंन्द्रंुंतमें चेत्र वदी - अमावास्या, निवण आसन खड्पतन, मिवांणस्थान खम्मेदधिखर, अंतर- इनसे पेंसटलाख चौरासीह गर वर्ष घाट हजार .कोटी बष गए १९वें मलछिनाथ भमए | अरनाथ तै|यिकर, चक्रवत्ती और कामदेव तीन पदवीकि-: धारी भए | । . १९-मछिनाथके कलझछाका चिह्न । , पहला भत्र विजय, जन्मनगरी मिथिलापुरी, पिताका नाम कुम्म, माताका नाम रक्षता, गर्भतिथि चैत्र सुदी १, जन्मतिथि मागोशिर छुदी ९२, जन्मनक्षत्र अद्विनी, काय ऊची २९ धनुष, रभ सुवणं समान पीछा, आयु ৭৭ हजार वषे, दीक्षातिथि मारगेशिर सुदी १३१, दीक्षावृक्ष अशोक, कंवलज्ञान तिथि पांव व्द। ३, गणधर २८. र्बाणतिथि फाल्गुण सदी ५, निर्वाण आसन खङ्कासन. पिर्वोणस्थान सम्मेदाशिखर, अतर-हनक पाछ 4४ छाख व गए -- वें थी सुनिसुत्रतनाथ मए | . माह्िनाथ वालब्ह्मचारी भए न विवाह किया, न राज्य किया-कुमार अवस्थामें ही दीक्षा छो । २०-मुनिसुत्नतनाथके कछवेका चिह।._ पहला भव अपराजित, जन्मनगरी कुशाग्रनगर अथवा रानगरही, पिताका नाम सुमित्र, माताका नाम प्मवती, गर्भ तिथि आ्रवण वदी २, जन्मतिथि वैशाख वदी १०, जन्मनक्षत्र . अवण, काय ऊंची १० धनुष, रंग श्याम अंननागेर समान, আন্ত ३० हजार वषु, दीक्षातिथि वेशाख वदी १०, ._. दीक्षावृक्ष




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