बालाविनोद | balvinod

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : बालाविनोद  - balvinod

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्यामसुन्दरदास - Shyaam Sundardas

Add Infomation AboutShyaam Sundardas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(९ ) याहर न जयि, न पर पुरुप पर श्रांस उठायें, खिड़की भकरोखे कमी ' तकाॉकिकि इस से सती धर्म .में वाघा श्राती हैं उत्तम मध्य निकट और लघु जो चार प्रकार की पतित्रता श्रौर उनके लक्षण झनसूया जी ने महारानी सीता जी से चताये थे ये हैं उत्तम के धस बम मन मादीं । सपनेहु शान पुरुप जग नाहीं ॥ मध्यम परपति देखर्दि ऐसे ! भ्राता पिता पुत्र निज जेंसे ॥ धर्म विचार समुश्ति कुल रददददीं । सो निछृष्ट तिय श्रुति शस कहीं ॥ विन श्वसर भयते रद्द जोई।, जानेहु झधम नारी जग सोई ॥ इन में निकट झधम तो दूपित ही हैं, मध्यम भी न वने केवल उत्तम के श्राचार धारण करे श्रीर सिदा श्रपने पुरुष के दसरे की छोह मी न देखें ॥ नियम श्रौर धर्म ॥ पतित्रता के वास्ते तन मन से पति की सेवा में लगी रहना यही एक नियग श्रौर झति स्नेह श्र पीति से उसकी भक्ति करना यही एक महा घर्म शास्त्र ने निणुंय कया है, इस से घिपरीत जो नेम घ्म श्राज कलून खियां वघोरती हैं वह सब श्रवथ है। उनको इतना ते! ज्ञान ही नददीं कि नियम कहते किसको हैं श्र घर्म किसका नाम है, हां इसको वड़ा विचार है कि छुरड्लावी जाने में देह पर वस्त्र न हां बिता नहाये कोई घस्तु न छूजाय, रसेई में ऊनी या घाई फीची थोती रहे, चौका कहीं पति भी छू दे तो भ्रष्ट हेजाय-वस इसी छुभ्नादूत को नेम समझती हैं और गंगा यमुना नहाना, श्राघी श्राधी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now