अनुभ्रमोच्छेदन | Anubhramochchhedan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अचुभ्रमोच्छेदन ॥ - १३
देश की पाठशाला में इतिहासों को पढ़ के राजा जी को 'अपृवेविज्ञान हुआ क्या यूरोप.
'मरिका एफरीका श्रादि देशों के पूरे इतिहार्सो से भी श्य्योवत्त देश का प्राचीन -
इतिहास बुरा है यह भी इन का लेख आय लोगें! को ध्यान में रखना चाहिये ।
इतिह्ा० प्रष्ठ ३ | पंडक्ति २ । ( आगे संस्कृत श्लोक बनाते थे अब भाषा में छन्द
और -कर्वित्त बनाते हैं क्योंकि गय का कण्ठस्थ रखना सहज है निदान ये भाट इसी
में बढ़ाई समभते हैं ) क्या ही शोक की बात है कि मनु बारमीक व्यास प्रभृति ऋषि
. महर्षि महात्मा महाशय ब्राह्मण लोगों को तो राजा जी भाट ठद्दराते हैं और आप
.महात्मा्णों के निन््दक और उपदासकत्ता होकर नकली की पदवी को धारण करते
हैं विदित होता है कि '्रार्य्याव्तीय धार्म्मिक ्ाप्तपुरुषें की निन्दा श्र विदेशियों की
श्स्युक्ति सदश स्तुति ही से राजा जी प्रसन्न बनते है । इतिहा० प्रष्ठ ४, प॑ ३० ( हाय
हमारे देश में इतना भी कोई समझनेवाला नहीं ) सिवाय आप के ऐसी २ गूदू॒बार्तों
के सम को कौन समझ सकता है तब ही तो श्राप सब से बड़ा मंसूवा बांध कर
इतिहास लिखने को प्रदृत्त हुए । इतिहा० प० १० ( बहुतरे हिंदू यद्द भी कहेंगे
कि जो बात पोथी में लिखी गई और परम्परा से सब हिंदू मानते चले आये भला श्रब
वह क्योकर अूंठ ठददर सकती है ) भला यहां तो हिन्दुओं की परम्परा का तिररकार
राजा जी कर चुके और दोनों निवेदनों में ज्ञाह्मण पुस्तकों को वेद मानने के लिये स्वी-
कार किया है ठीक है मतलबसिन्घु ऐसी दी चतुराहे से पूरा करना द्वोता है । इतिह्वा०
पृष्ठ १२ । प० १ । से लेकर पृष्ठ १४ पं० ११ तक बौद्ध जन 'हिंदर्मों के मत वि-
पयक बातें लिखी हैं इस से विदित होता है कि राजा जी का मत बौद्ध जैनी ही है । '
. इसीलिये अपने मत की प्रशंसा बैदिकमत की निन््दा मनमानी की दै । यह इन को ,
श्च्छा समय मिला कि कोई जानें नहीं और वेदिक मत की जड़ उखाइने पर सदा
इन की चेष्टा है पुनः स्वामी जी जो सनातन रीति से चेदों का निर्दोष' सत्य अर्थ ठीक
२ प्रकाशित कर रहे है इन को अच्छा कब ऊग सकता है इसी लिये निवेदनों में भी _
अपनी सदा की चाल पर राजा जी चलते हैं इस में कया आश्चर्य है । इतिहा० छठ
१५. । एं० १ । ( हिन्दुओं की प्राचीन अवस्था० ) यह बड़ा अनर्थ राजाजी का है
कि श्रायी को हिन्द और पारस देश से जाये हैं । पहिली बात तो इन की निमुंरु है
बर्योंकि वेदों से ठे के गष्टाभारत तक किसी अ्न्थ में आयी का हिन्दू नददीं लिखा कौन
जाने राजाजी के पुरुख़े पारस देश से दी इस देश में आांय हो और उन का परम्परा
से स्वदेश पारस 'का 'सस्कार अब तक चला आया दो क्या यह चात असम्भव है कि
प्र
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