तत्वार्थवृत्ति | Tatvarthavriti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
622
श्रेणी :
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No Information available about आर्यिका जिनमती माताजी - Aaryika Jinmati Mataji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११)
दूसरे अध्याय में औपशमिक आदि श्रेपन भावों के वर्णन में नौ क्षायिक
भावों का प्रस्तुतीकरण सर्वारधिसिद्धि का अनुकरण करता है । द्रव्येन्द्रिय के कथन में
बाह्य निवृत्ति इन्द्रिय संस्थानरूप है ही किन्तु इन्द्रियावरण कम के क्षयोपदाम से युक्त
अपने अपने इत्द्रिय के आकार विशिष्ट आत्म प्रदेशों पर संद्लिष्ट जो सूक्ष्म पुदुगल हैं
उन्हें अभ्यन्तर निवृत्ति कहा है । इन्द्रियों के विषय तथा उनके स्वामी का प्रतिपादन
गौदारिकादि शरीर, उनकी आगे आगे सूक्ष्मता आदि का कथन किया है लब्घधि
निमित्तक तैजस शरीर के निःसरणरूप और अनिःसरणरूप ऐसे दो भेद किये हैं ।
तीसरे अध्याय में प्रारम्भ में लोक का वर्णन उसके अधोलोक आदि के
राजूओं का प्रमाण, वातवलयत्रय, नारकियों का दुःख आयु आदि का कथन है । मध्य-
लोक में, जम्बूद्वीप भरत आदि सात क्षेत्रों को विदेहस्थ सुदर्शनमेरु, देवकुरु, उत्तरकुरु,
गजदन्त, बत्तीस देशों के नाम उनकी प्रमुख नगरियां, विभंगा नदियां, वक्षार, कांचर-
गिरि आदि का सुविस्तृत वर्णन किया गया है ( कुलाचल, पद्मादि सरोवर, श्री आदि
देवियां, गंगादि चौदह महानदियों का उद्गम, उत्सर्पिणी आदि काल धातकी खंड
तथा पुष्कराधं में होने वाले क्षेत्र कुलाचल आदि की व्यवस्था मनुष्यों के आर्य और
म्लेच्छरूप भेद अन्तर्दीपज म्लेच्छ ( कभोग भूमिज ) मनुष्य तथा तियंँचों की जघन्य
उत्कृष्ट आयु का कथन इस अध्याय में है । इसमें टीकाकार ने विदेहस्थ मनृष्यों की
ऊंचाई सवा पांच सौ धनुष प्रमाण बतायी है ।
इस अध्याय के अन्त में लौकिक प्रमाण और अलौकिक प्रमाण का विस्तृत
विवेचन किया है ।
चौथे अध्याय में देवों का वर्णन है, चार निकाय, इन्द्रादि दस भेद, प्रवीचार,
भवनवासी आदि के प्रभेद बतलाये हैं । ज्योतिष्क के कथन में कील के समान ध्रूव
ज्योतिष्क और उन ध्रुव ज्योतिष्क का उल्लेख टीकाकार ने किया है जो अन्यत्र
दृष्टिगोचर नहीं होता । वैमानिक देवों की लेश्या आयु तथा अन्य निकायों की
आयु की कथन है ।
अन्त में तीन लोक का प्रमाण बतलाने वाले आगम का सयुक्तिक समर्थन
किया है ।
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