उम्र बस नींद सी | Umar Bas Need See

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Umar Bas Need See by अजीज आजाद - Ajeej Ajad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उकताए जिस्मों पे थकन श्रोढ़ कर झ्राए हैं एक कुली की तरह न जाने कितना वोभ उठाए है घर झ्राने की श्रकुलाहट थी श्राये तो श्राभास हुमा हम परदेसी फकत यहां पर रात बिताने श्राए हैं की चादर उसने क्यूं फलादी श्रांगन मैं हम तो लेकिन सारी खुशियां वस मुठ्ठी भर लाएं हैं उस दर्पन का पानी उतरे एक जमाना बीत गया सूरत नजर नहीं श्रायेगी फिर भी ध्यान लगाए है तुमने जो देखा है वो तो रगों की कुछ परतें है इन परतों के नीचे जाने कितने दाग छुपाए है इस झ्रागन की तुलसी जिसका पत्ता-पत्ता टूट गया एक है सूखा पेड़ कि जिसमें सारे श्रास लगाए है उम्र बस नीद सी 1 15




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