अपने अपने रस्ते | Apane Apane Raste
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)11
--अच्छा, फिर देखा जायेगा ।--राजेन्द्र अपने कमरे की ओर घत्ता
गया भर दीवान अपने छमरे की ओर ।
शाजेन्दर अपने कमरे मे आकर बढ गया । उसके सम्मुख आज दो नये
परिचित ब्यक्ि थे । एक अमृत चटक-मटक से पूर्ण बातें करने में निपूण,
और दूसरी वह । उसका नाम पूछना तो भूल गया । क्या नाम है उसवा,
पर थी दितनी सरल, सुन्दर और साधारण । स्वाभाविक सौन्दयें की मूर्ति,
बही भी ब्धिमता नहीं । उसकी आप पे काजल, क्पोलों पर रज और
अधघरो पर लिपस्टिव इत्यादि बुछ भी नहीं । ऐसा लगता थां मानो उसे
अत्यन्त सोच-विचार कर रचा है। परन्तु उस कामिनी का प्रभाव राजेन्द्र
ने हुदप पर बदो पड़ा, यह राजेन्द्र स्वय हो समझने में असमर्थ था । वह
मुन्दरता जानता था पर सौन्दयं बो देखकर अपना बनाने की भावना था
जन्म उसवें हृदय में बदालित् अभी सही हो पाया था । उसका शेशव अब
भी उसमें घेय था । वह यौवन वी. साददता व चदलता रे पूर्ण रूप से
परिचित न था । वह कुसुम को दिला देखकर प्रससत होता जानता था ।
सोडना नही ।
अमृत्र के शब्दी ने उसको प्रभावित किया । उसके सच्चे मित्र बनाने की
भावना, उस पर तन-सन-धन त्याग व दलिदान बरने के विचार ने अमृत
बो राजेर्द के हुदय में एक स्थान दे दिया था । अमृत क्तिना धनवान है
दि गर्मी के समय से भी गम पतलून तथा रेशमी ब मीज पहनता है । उसने
दोनएव बार पहले भी देखा, पर सदा एवं -से-एक अच्छे वस्प्र पहने देखा, पर
उसमें विसो प्रशार बा गद नहीं था। उसने अपने थो वबार्यानय से टगे
शीशे में देखा, उसके सामने सोदट उसका सौकर-सा सगता है 1 गह
उसके वे ठाउदार बपडे और बहां उसकी यावी पेन्ट ? इनने पर भी वह
उसयों मिद्र दनाते बी भावना रखता है। वारतय में उसका हुइय विशाल
है!
राजेन्द्र थी दिचारधघारा घड़ी थी ध्वनि में टूट शई । चपरासी ने
प्रवेश बरये बह
“सावन दुसादा है।
राजन धट से उड़ा आर पास हो साटद गा ब्रा झए
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