आधे अधूरे लोग | Adhe Adhure Log

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Adhe Adhure Log by प्रेम सिन्हा - Prem Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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বিদাত দে ্ न 4 ५ --अच्छा, फिर देखा जायेगा 1 টিকা ছা, रया ओर दीवान अपने कमरे की ओर। न किक राजेन्द्र अपने कमरे मे आकर बैठ गया । उसके सम्मुख आज दो नये परिचित व्यक्ति थे । एक अमृत चटक-मटक से पूर्ण बाते करने मे निपुण, और दूसरी वह । उसका नाम पूछता तो भूल गया । क्या नाम है उसका, पर थी कितनी सरल, सुन्दर और साधारण । स्वाभाविक सौन्दर्य की मूर्ति, कही भी कृत्रिमता नही । उत्को आंखो मे काजल, कपोलौ पर सर्ज मौर अधरो पर लिपस्टिक इत्यादि कुछ भी नहीं। ऐसा लगता था मानो उसे अत्यन्त सोच-विचार कर रचा है। परन्तु उस कामिनी का प्रभाव राजेन्द्र के हुदय पर क्यों पड़ा, यह राजेन्द्र स्वय ही समझने में असमर्थ था| बह सुन्दरता जानता था पर सौन्दर्य को देखकर अपना बनाने की भावना का जन्म उसके हृदय में कदाचित्‌ अभी नही हो पाया था। उसका शैशव अब भी उसमें शेप था। बह यौवन की मादकता व चंचलता से पूर्ण रूप से परिचित न था । वह कुसुम को खिला देखकर प्रसन्‍्त होना जानता था । तोडना नही 1 अमृत के शब्दो ने उसको प्रभावित किया । उसके सच्ये भित्र बनाने कौ भावना, उम पर तन-मन-धन त्याग व बलिदान करने के विचार ने अमृत फो राजेन्द्र के हृदय मे एक स्थान दे दिया था। अमृत कितना धनवान है कि गर्मी के समय मे भी गर्म पतलून तथा रेशमी कमीज पहनता है। उसने दो-एक बार पहले भी देखा, पर सदा एक-से-एक अच्छे वस्त्र पहने देखा, पर उसमे किसी प्रकार का गये नहीं था। उसने अपने को कार्यालय में टगे शीशे मे देखा, उसके सामने तो वह उसका नौकर-सा लगता है। कहां उसके वे ठाठदार कपडे और कहा उसकी खाकी पेन्ट ? इतने पर भी वह उसको मित्र बनाने की भावना रखता है 1 वास्तव म उसका हृदय विशाल है! राजेन्द्र की विचारधारा घंटी की ध्वनि से टूट गई। चपरासी ने अ्रवेश करके कहा-- --सावने बुलाया है। राजेन्द्र झट से उठा और पास ही साहब का कमरा था!




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