जैन वाणी (करम सिद्धांत विसेसक | Jain Vani (karam Sidhant Visesak)
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
450
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कर्मों की घूप छाह 1] [३१
चालू रहती है। उसका कभी अवसान-म्न्त नही हो पाता । अत ज्ञानी कहते
हैं कि कम भोगने का भी तुमको ढग-तरीका सीखना चाहिये । फल भोग की भी
कला होती है भौर कला के द्वारा ही उसमे निखार भाता है। यदि कमें भोगने
की कला सीख जाओगे तो तुम नये कर्मों का बथ नही कर पाझोगे । इस प्रकार
फल भोग मे तुम्हारी झ्ात्मा हत्की होगी ।
कम फल मोग आावश्यफ
शास्त्रकारो का एक भ्रनुभूत सिद्धान्त है कि--“कडाण कम्माण न मोक्ख
श्रत्वि 1” तथा 'मश्वयमेव भोक्तव्य, कृत करमें शुमाशुभमू” यानी राजा हो या
रक, झ्रमीर हो या गरीव, महात्मा हो अथवा दुरात्मा, शुमाशुम कमें फल सब
जीव को भोगना ही पड़ेगा । कभी कोई भूले भटके सत प्रकृति का झादमी
किसी गृहस्थ के घर ठडाई कहकर, दी गई थोडी मात्रा मे भी ठढाई के
भरोसे भंग पी जाय तो पता चलने पर पछतावा होता है मगर वह भग
अपना भ्रसर दिखाए बिना नही रहेगी । वारम्वार पश्चात्ताप करने पर भी उस
साधु प्रकृति को भी नशा भाये बिना नही रहेगा । नशा यह नहीं समभेगा कि
पीने वाला सन्त है और इसने श्रनजाने मे इसे पी लिया है भत इसे भ्रमित नहीं
करना चाहिये । नही, हगिज नहीं । कारण, बुद्धि को भ्रमित करना उसका
स्वभाव है। अत वह नशा शभ्रपना रग लाये बिना नही रहेगा । बस, यही हाल
कर्मों का है ।
मगवान् महावीर कहते हैं वि--'ह मानव ! सामाय साधु की बात
बया ? हमारे जेसे सिद्धगति वी भोर बढ़ने वाले जीव भी कमें फल के भोग से
बच नही सकते । मेरी आत्मा भी इस कम के वशीभूत होकर, भव भव में गाते
खाती हुई कम फल भोगती रही है । मेने भी अनन्तकाल तब, मवप्रपच में
प्रमादवश कर्मों का बंध किया जो भाज तक मोगना पढ़ रहा है। कमें भोगते
हुए थोडा सा प्रमाद कर गये तो दूसरे बम झाकर वध गए, चिप गए ।””
मतलब यह है दि ब्मों वा सम्वघ बहुत जवदस्त है। इस वात को
अच्छी तरह समभ लिया जाये वि हमार दनिक व्यवद्वार में, नित्य थी पिया
में कोई भूल तो नही हो रही है? नये कम वाघने में मितना सावधान हू ?
कम भोगते समय कोई नये कमें तो नहीं बघ रह हैं * इस तरह विचारपूवर
काम परने वाला, कमवध से बच सकता है ।
कर्मों को घूप-छाह
परन्तु ससार मा नियम है वि सुस्व के साथ दु तर आता है और साता के
साथ भ्रमाता पा मी चफ्र चलता रहता है। पह बभी नहीं हा सपत्ता हि
शुभाशुभम बम प्ृतियों में मात्र एक ही प्रकृति उदय में रहे और दूसरी उसमे
साथ नही भाये । ज्ञानियों ने प्रति्मण घुमाघुम कमों बा यघ भौर उदय घाल
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