श्री जैन रामायण | Shri Jain Ramayan

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Shri Jain Ramayan  by मूलचंद्र जैन - Moolchandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वयम्बर आादश {२६५ भिहल-स्यो याद किया है बता कया भाड़ लाया हैं । चोधदारे-मेहीराज जल्द चलिये कि दर्दार भाप है। अमिदलल- दार से तो मुझको नहीं कों कामं ६१ चपलबेग का यह नजाग देखकर तीज्जुषमे राना घोर पुना चपलंवग रे! कुंबर झान यह तेलार तो वदशत कसी | किसिकी इन्त में बनाई है यद सूरत देसी ॥ भामंडल--र्या बताउं हुमें इस वक्त हैं हालत कैसी । चस में भपने नहीं पूछो न यदं तवियंत सी । चपलदेग--पष्ं केवर जी क्या, भाज बेहशत ह तुमको 1 खयाले सनम से जो, उन्पूत दै तुप ॥ भामंडल--मुनी एक तसवीर, दे गये हैं मुंभकों 1 हुआ देख शैदा मुनाउं क्या 'तुर्भको ॥ चपलबेग--कहीं करने की सच्ची होती हैं बातें | अजब तरह की ये मुददव्यत है तमफों ॥ उठों कबरां जल्दी से, पोशाक बदली । इमेशा से जसी की शादत थी तुमकी !। भागंडल-पह समर इव सही, शरदं न फुरसत हूं मुकफों ! करू याद उसकी, सुनारं क्या तुमको ॥ चपलबेंग का गाना फुंबर भंग नाम, उसका तुम वतामों | है रहना उसकां कहां; मुकसे जताश्री ॥ जो हो स्मान में छिन भर में लायं । न्मी को फट फर पाताल जाउं ॥ „ करू जेर शृ दुनिया को झब में । लाव उसको उठा ताकत ये पभम ॥ भामंदल (गनौ ) नाम: हैं जानकी, सुन उस परी का | रुप सम्दर जी, रधान सका ॥!




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