ठूँठा आम | Thoontha Aam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भगतशरण उपाध्याय - Bhagatsharn Upadhyaya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुना १७
करेखा । वसन्त निपट गया । पतमड़ आयी । माचे अप्रैठमें
खोया, पर अप्रैल एक डग न सरके, जैसे अभिशप्त मन्त्रजड़ सप ।
से दिनम डर लगने कणा । हँ खग सकता हे डर दिनके
सूनेम मी, लगता है, दमने खमा था । रूगता जैसे कुर्सियोंपर कोई
बैठ उठेगा, जैसे उनकी जड़ता सचेत हो उठेगी। और यह परग
जिसपर सोता हूँ, दिनमें पड़ा रहता हूँ, बेबस । और चुपचाप
इसके उचे सिरहाने-पेतानेपर नज़र डाठता हूँ, बेचेनीमें कभी
पेताने सिर करता हूँ, कभी सिरहाने । पर वह डर जैसे घेरे-घेरे
रहता है । ऊँचाई दोनों ओरकी बराबर है, काठे आबनूसकी
चिकनाहट स्याहीके साथ अपना डरावना साया डाल देती है ।
ऊगता है, पलंगपर नहीं ताबूतमें सोया हूँ । आबनूसी ठोस सपाट
सिरहाना-पैताना ताबूतका ही असर पैदा करते हैं । तूतनख़ामन
जैसे ज़िन्दा पड़ा है, ज़िन्दा दरशोर, इस स्याही-पुते पढंगकी गहरी
चहारदीवारीमें क्रैद; जिसकी ऊंची छतको आबनूसके ही खम्भे
उठाये हुए हैं। क़ाहिराके अजायबघरकी सहसा याद आ जाती है
उस ठोस सोने, ठोस लकड़ीके कमरानुमा ताबूतकी, और तूतनखां-
मनकी “ममी' पर उसकी सोलह सालकी प्यारी सुन्दर बीबीके छोड़े
हारकी, जिसके पूरु कुम्हला गये थे । और यहाँ भी तो सामने
उस तसवीरपर एक गजरा पड़ा है, जिसके पूरु कुम्हला गये दै,
विचणे हो गये हे |
ओर ये भाड़-फ़ानुस, वेशक्रीमती श्ञाइ-फानूस, जो एक
गुज़री हुई दुनियाकी याद दिलाते हैं । उस दुनियाके अँधेरेको
इनकी हज़ार-हज़ार शमाएं भी दूर न कर पाती थीं, पर जिनपर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...