डा॰ नगेन्द्र के सर्वश्रेष्ठ निबन्ध | Dr. Nagendra Ke Sarvashreshth Nibandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ झासोचना की सच्ची प्रगति डा० मगेस्दर के हो द्वारा हुई है भौर बे पुक्सनी षी परम्परा का डिस्तार कर हिस्दी की भालोचना को मई उपससब्धियों के गौरव किलर की भोर से जा रहे है। [४] एक श्रासोचक को रघगाएं होने फे कारणा प्ररु घप्रह के मगमग पमी निदप प्ासोभता साहित्य की तिभि है। फिर मी प्रकार भेद से उन्हें पोच खंडों मे बट दिया मया है । पहले लण्ड में साहित्य-पास्प के सिद्धान्तों की चर्णा पौर मूस्पोकन है। इस सण्ड के कुछ महत्वपूणा नियषों का उत्मे हुम प्रमी कर भाए है। उसके प्रतिरिक्ति 'साहिरिय में पारमाभिस्पति निबंध थी भोर हम पाटो का पपात विरेप रपसं प्राक करना बाहर है जिस पुम म प्रासो- पक धगेद्र ते प्रपना सुजम-काय भारम्भ किमा बा उस युग मे प्रगतिशील प्रास्दोलम हे: प्रभाव से साहित्य भषिकाधिक निर्गपक्छिक प्रौरश्दृहोताभा रहा था उसमे से रघपिता का भारम प्रमाप पटने सग गमा चा । उसा पृष्ठ भूमिम सिपा गया यह्‌ निबप साहित्य कौ मूष प्रेरणा शा पूनरास्यान कर सहो मूर्यो की स्पापना का एष सयम प्रयहेन है। जब राजनीतिक मतबादों के प्रभार प्रसार को ही साहित्य का मूस भर्म बनाने की पेप्टा को जा रही थी तब डा तमेन्द्र मे जिस निर्भीवता स भ्रह का सस्कार भौर परिफत भागन्द थी उपलब्धि के इस उमयपक्षी सिद्धांत का प्रतिपाइन कर तत्कालीन गई-गुगार को दूर करने म सहामता पहुभाई है। उन्होंने नियत भोपणा की धो कि *. ब्पक्तित्व की महत्ता भर्पात्‌ उसका विस्तार भौर गामीय जीगम के मद्द्तर भूस्यो क माष ठाराम्य करे से प्राप्ठं होत हैं. धौर थे महतर मृस्य भन्त मे षटुत भण समष्टिमत मूम्य हौ हगि यह टर ई! परन्तु एसा निराय स्यूम रप्टि स बाह्य (सामाजिए भौर राजनीहिक) प्माम्दरालना क़ सामन रपबर लहीं करना होगा षेरएन्‌ भ्यापर्‌ प्रौ महम परातस पर दे घ्ौर बास की सीमा्षों को तोड़कर बहती हुर भ्रसर्श मानय-चतना के प्रकाण मे हो गरना होगा । प्रत्यक युम प्र दप प्रपनो समम्याप्नोमे सोपा हुषा धम सद्य का विरस्वार क्र पामपिन भाव-यराप्ो मं प्रनुमार माहिर परभ्रघक्षर निर्णय हैता रहा है परन्तु इतिहास सालो है रि य निर्णय भस्पापी हो रह हैं । माम यक्‌ परमषयक्लाण पूरी हा जाने पर उस भसप्द सानव-बतना से शुरस्त हो घपनी घक्ति का परिचय टिया है घौर उन निण्या म उचित सपापन कर दिया है। निम्स्ति सौर मिर्मस हप्टि वे बिना बयसे से एसी हड़ता संसब सही दाती । दूसरे सर्द में तोन निभ है जा मारतीय साहित्य क कुष्ठ पलो मे पिभेचम के सतिरिक्त स्वतंत्र भारत मे हिस्दी सादिरिय बी प्रगति था सदा-बोपणा घस्तुन




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