क्या करें भाग - 2 | Kya Karen Bhag - 2

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Kya Karen Bhag - 2  by श्री क्षेमानंद राहत - shree Kshemanand Rahat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गूर मार्च महीने मे रात को कुछ देर से में घर जा रहा था । गली में घुसने पर दूर के एक खेत, मे , बरफ के ऊपर काली-काली पंरंछाइयाँ-सी मु दिखाई थी । मेरा ध्यान उधर न जाता, यदि गली के, किनारे पर खडे हुए सिपाही ने, उन परछाइयों की श्रोर देखत हए चिहा कर न क्‌ होता । “वासिली ! तुम श्राते क्यो नही ? - , , एक श्रावाज ने,जवाव दिया, ““यह चलती ही नहीं” । और इसके वाद परद्ाहयो सिपाही की मोर श्राती हे दिखाई दी । में ठहर गया और सिपाही से पूछा-- ¬ - ; क्या मामला है ९ १९




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