बदलते सामाजिक परिवेश में पुलिस की भूमिका 1990 से 2005 तक एक समाजशास्त्रीय अध्ययन | Badalte Samajik Parivesh Men Pulis Ki Bhumika 1990 Se 2005 Tak Ek Samajashastreey Adhyayan

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Badalte Samajik Parivesh Men Pulis Ki Bhumika 1990 Se 2005 Tak Ek Samajashastreey Adhyayan by आनन्द कुमार - Anand Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस तरह भारत में अँग्रेजों के समय से चली आ रही पुलिस पद्धति में तेजी से परिवर्तन हो रहा है एवं समाज में स्थित होकर रह गयी हे। अनेक राजनैतिक कारण, सामाजिक गैर जिम्मेदारी, भ्रष्टाचार, प्रशासन हीनता ओर व्यवसायिक अक्षमता ने उसकी छबि धूमिल कर दी है । भारतीय पुलिस के अवकाश प्राप्त अधिकारी एस्छसीए की छवि के संदर्भ में कहा है कि पुलिस के संदर्भ में लोगों के मन में भ्रजीबोगरीब विरोधाभास की स्थिति बनी है। एक ओर जहाँ सामान्य मिश्रा ने पुलिस अवसरों पर पुलिस जनों की उपस्थिति पर कोई स्वागत नहीं करता वहीं दूसरी ओर. जब लोग कठिनाई में पड़ते हैं तब उसकी तीव्रता से खोज की जाती है। यहाँ तक कि समझदार व्यक्ति भी उसे घृणा की दृष्टि से देखते हैं। कई बार पुलिस के कार्यो को चाहे वे कितने भी अच्छे उद्देश्य से क्यों न किये गये हों, शक की नजर से देखे जाते हैं और ऐसा समझा जाता है कि वे ऐसे अभिप्राय या पक्षपात या दबाव से किये गये हों। 'यद्यपि राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस प्रशासन पर विस्तृत अध्ययन किये गये लेकिन पुलिस प्रशासन पर छोटे-छोटे क्षेत्रों में एवं जनपद स्तर पर क्या मा हुआ? इसका ` आशय यह नहीं कि अन्वेषणकर्तओं द्वारा किये गये अध्ययनों. की अवहेलना करना है बल्कि उनके दारा किये गये अध्ययनों को भलीभाँति समझते हुये ` एवं सम्मान करते हुये अपने जनपदीय स्तर के अध्ययन को पूर्ण करना है। यह सच है कि बहुत सी रिपोर्ट में राष्ट्रीय स्तर पर पुलिस प्रशासन एवं उसकी कार्यविधियों पर व्याख्या की गई, ओर राजकीय स्तर पर भी आयोगों द्वारा विस्तृत सूचनायें दी गयीं।” 4




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