हिंदी कविता का विकास पहला भाग | Hindi Kavita Ka Vikas Part 1

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Hindi Kavita Ka Vikas Part 1 by आनंद कुमार - Anand Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी-साहित्य की रूपरेखा | ३ कन्याओं के लिये हाती थीं, इसलिय चारणों की रचनाओं में शड्भार रस का भी काफ़ी सिश्रण रहता था । यहाँतक कि किसी- किसी ग्रन्थ में वीर रस की अपक्ता शद्भार रस ही अधिक मित्रता है इस काल म निम्नलिखित मुख्य-मुख्य ग्रन्थों की रचना हुदै । - १-- खुमान रासो र२--बीसलदेव रासो २-प्रथ्वीराज रासो ४--्राल्हा --परमाल रासा ६-- विजयपाल रासो इन सब में पृथ्वीराज रासों ही विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसमें लगभग २६०० पृष्ठ हैं और ६६ सग हैं । पृथ्वीराज के दरबारी कवि श्रौ मित्र चन्दबरदायी ने इसको प्रारम्भ क्रिया था और उसके पुत्र जल्हण ने इसको समाप्त किया । इस पुस्तक मे प्रध्वीराज के जीवन की समस्त घटनाओं का अनेक इन्दों में विस्तारपूर्वक वणन है । बहुत-से श्राघुनिक विद्वान्‌ इसकी प्राचीनता पर सन्देह करते हँ । उनके श्रनुसार यह सोलद्वी-शताग्दी का लिखा हुआ एक जाली अन्थ है । मिश्रवन्धु तो चन्द्‌ को हिन्दी का प्रथम कवि मानते हैं | हमारी समर में 'रासो? को जाली ग्रन्थ प्रमाणित करने में विद्वानों ने जो तक उपस्थित किये हैं, वे अकाट्य नहीं हैं । 'रासो? निश्चय ही पृथ्वीराज के समकालीन किसी चन्द्‌ कवि का लिखा हुआ है । हाँ, बाद में उसकी नक़ल करनेवाले और उसके सम्पादक लोग अपनी तरफ़ से उसमें क्षपक मिलाते चले गये होंगे, जेसा कि रामचरितमानस के सम्बन्ध में हुआ दे । यही कारण है कि रासो को पढ़ते समय पृथ्वीराज के




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