प्रकाश की ओर | Prakash Ki Or

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अमर चन्द्र जी महाराज - Amar Chandra Ji Maharaj

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सुरेश मुनि - Suresh Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाश की छोर ७ इस प्रकार जीवन के हर कोने मे झन्वकार छाया रहता है । जव तक वह अन्धकार ट्टे नदी, जव तक बह अँघेरा छिन्न-भिन्न न हो और प्रकाश की किरणे हमारे जीवनमे जगमगाएँ नहीं, तव तक जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता | रात्रि के गहरे ्न्थकार मे, जव सूय दूर रहता हे और घ्पन्धकार छाया रहता हे छमावस्या की काली निशा से, उस घर में, जिस घर मे इन्सान वैठा दै, मालिक वन कर वैठा है और घर का कोना-कोना उसकी जानकारी म रहता ह । लेकिन उस ्नन्धकार मे श्चगर घरमे कोई चोर था जाय या भैर श्रादसी श्रा जाय श्र वह्‌ इधर-उधर की चीजे उठाने लगे शोर उसकी जरा-सी खडगडाहट हो जाण, उस श्चाव्मी की निद्रा जाग जाण, तो वह्‌ चार का मुकावला करने कों खडा होता हैँ शरोर श्रावाज लगाता हं कि “चोर श्रा गया, चोर घरमे घम गया । ` प्रावा सुन कर परिवार के लोग पुत्र, पुच्री, भाट, वहन पत्नी समी श्रा जात ह । यह्‌ देखकर चोर दुवक कर कोने में जाकर खडा हौ जाता है झौर घर वाले ही एक-दूसरे को उस श्नन्धकार मे चोर समभ कर ण्क-दृमरे पर ला्ि्योँ वरमान लगते है । इस प्रकार कोन अपना हैं ओर कोन वेगाना है-- इसका पता नटी लगता हं गहरे श्न्धकार से ! तो, यह वाहर का सो अन्धकार र, यट भी तव इतना वडा स्बनरनाक ह कि श्रपने श्योर परायका भद उसमें समाप्त हो जातादहं। किससदहस सवय करना दंश्चौर किस से हमे प्यार करना है, इसका भान नहीं रहता हैं और शत्रुझों पर पड़ने




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