दाँवपेंच | Danvapench
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दॉव-पेंच ~ [ कहानी
पहचान की नींव पृड़ी । दीप ने वताया, वह नया-नया रियासतं
का वकील होकर श्राया हे । युवततौ--राजङकमारी ने अपना चास्त-
विक परिचय न देकर कदा-
(मै रानीजी की खस सहेली हूँ । और टमटम से उत्तर
पडी) दीप ने भी साइकिल को एक वृत्त के सहारे खगा
चिया। «फिर दोनों पाम के एक प्राचीन खंडहर मे चले
माए । क्षण भर कोइ छुड न बोला | दीप ने मौनता भंग की--
“क्या रानी जी अपने कमेचारियों को कभी दशन नहीं देती ??
दिती दः युवती ने उत्तर दिया 'कितु यह दीवान जी की
सजीं पर हे #
दीप--'दीवान की मर्जी पर अपने कर्मचारियों को दर्शन
देती हैं । तब तो अच्छा शासन चलाती है ॥
युवती--( मुस्कुराकर ) स्या इसमे ङं असुविधा हे ¢
दीप--शुविधा-असुविधा की वात तो मै नदीं वत्ता सक्ता ।
मामूली कमेचारी हू--तिस पर नया, क्या जानू ¶ हो» आपसे एक
निवेदन हे ।
युवती -- किये ।
दीप-- क्या आपके दर्शन कभी-कभी हो सकते हैं १ इसमें
ता दीवानी की मजी की जरूरत नदीं हे १
युवती--ष्दीवानजी की मजीं की, यदो हर काममे जरूरत हे
वकील साद । खोर, सै चेष्ठा करहगी ४
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