स्वपन - लोक | Svapan Lok

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Svapan Lok by ललित कुमार - Lalit Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) स्बे में दौड़कर जाना, 'अवशुण्टनवतियों में से अपने माल फी शिनाझत करना, और रोते हुए बालक को गोद में लेकर उसे चुमकारते-चुमकारते कैश-बाक्सधारिणी अर्द्धाद्षिनी को उतारना । यह सब काम चुटकी बजाते करना होगा, श्रन्यथा दाम्पत्य-बन्धन में चिर-विच्छेद की आशझा है। ओर वैजगाड़ी ? यहाँ सुचिमल शान्ति और अनन्त विश्राम है। आदमी की भीड़ नहीं है, कोई मकंगड़ा मब्मट नहीं है, किसी के साथ सद्र्प होने की भी आशइ्डा नहीं है। „णया 0009000)01011 ] ৪০৮৮০, 81 21276000619 18 7010 10 018701७, दूसरे का सुँद ताककर सर्वसाधारण. यात्रियों की सुविधा के लिए व्यक्तिगत स्थाधीनता का बलिदान करना आवश्यक नहीं है। गाड़ी के फर्श पर खूब पुथ्राल बिद्ला है, ऊपर से तोंसक और चदरा विद्ठाकर आराम से दाथ-पैर फैलाकर लेटे पड़े हैँ । उठने पर माया घूमेया, बैठने पर লন का उद्रेक होगा और यदि खड़े दोने का प्रयत्न करें, तो पतन अवश्यम्भावी है। थदां शयने-पद्मनाभ के अतिरिक्त दूसरी गति नहीं है । शाब्रद भावी काशकारों फो यह लिखना पड़े कि जिस थाने में आरोदरण करने पर लेदने के अतिरिक्त ओर काई गति नहीं है, उसे गायान कहते हैं । गठरी-मोदरी और सन्वूक् धादि सारा सामान पीछे बँधा है। यह सब गाड़ी के भार-कैन्द्र को ठीक रखता है | उसके ऊपर पैर फैलाकर शरीर के भार को हलका कर रहा हूँ।




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