चतुरंग | Chaturang

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Chaturang by कन्हैया सिंह - Kanhaiya Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उनास्ती बुव्क शुल्क स्कर व्लय्पाच् क्यों झाती रुक-सरुक कर बयार, लौटा ले जाती छुपा प्यार, क्यों श्राती रुक-सुक कर बयार। झाँखों की कोरों को छूच्ू+ प्नकों की तालों में हिल-मिन्न, क्या कुछ कह जाती है सुप-चुप स्मृति मानस-पट पर सितासिल ? कुछ लाती कुछ ले जाती है. जब धातो रूक-सक कर बयारु। गीतों में सरगसम का संगम, श्वास ज्यों गंगा-यमुना जस: कर का कर से. स्पश सजग, पावन उृत्तों . का. पाउन फल ॥ गंगा-यमुना सी. निंमें् यह, बहू ध्ावो सरुक-सरुक कर. यार । उठती माटी से. मधघुर गंध, क्या. टूट चुके हैं सभी. बंध बँघ. बंठा तो. श्नजाने में, झाजीबवन का वह. सूदुबंधस + क्षिपटी स्दुमघुर सुगन्धों में, सिह्रानी रूक-रूक कर. बयार। | | ६ हक भा




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