विद्यापति एक अध्ययन | Vidhyapati Ek Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिद्यापति, उनका रचनाएं श्रीर व्यक्तित्व ११
फा सहारा दृ पदो पर दै । यद प्रस्तुत घातोचना फा विषय
है। इनमें विदयापति एक साथ संगारिक कवि, भक्त, नीतिजक्ञ
'ीर काव्य-पंछित के रूप में मारे सामने आाते हैं ।
विद्यापति का व्यक्तित्व कुछ ऐसा है कि साघारण वुद्धि फी
पकड़ में नहीं थाता । इसका कारण यह हैं कि उनकी प्रतिभा
बहुमुखी थी कर छन््ोनि पने समय फी सारी प्रवृत्तियों का
किसी न किसी रूप में प्रतिनिधित्व फिया। वह प्रधानतया
रसिक श्र पंडित थे, परन्तु इन दो प्रयृत्तियों में से कौन-सी
प्रधान यी, यह् कष्टना कठिन हैं । ये दोनों प्रयृत्तियाँ उनकी पदली
रचना ( कीर्तिलता ) में दी मिल जाती हूँ जददाँ तरुण कवि
जौनपुर की वेश्याशषों का बणन फरता है--
एक दि पत्र. पसार रूप लोब्वण गुणो श्रागरि।
चाननि सीथी मांछि वदस सए सदसद्धि नागरि ॥
सम्मापण किद्ु वेश्रान कइ तासजो कद्दिनी सबब कई |
विक्सण६ वेठाइइ श्रघु सुखे हिटि कूवूएल लाम रद ॥
सव्वडं केरा रिज वउन
तरुणी दरि वंक
चोरी पेम पिश्रारिश्रो ।
श्रपने दोप वश्यक
(सब दिशाओं म फैलाव पला थ।| रूपवती, युवती,
नागरी, गुणागरौ वाननि्याँ गलियों में सेकड़ों सखियों के साथ
चैठी थीं । सब कोई कुल न दुधु वाना करके उनसे बातचीत
करता था, कहानी कहता था । सुख मे वेचता-खरीदत। या,
चष्टि-कुतूदल-लाभ. में रद्द जाता था । सब दी की सीधी-सादी
आँखें इन युवतियों को तिरछी दिखाई देती थीं--चोरी से प्रेम
करने वाली प्रयि श्वपने दी दोप से सशंक रदती थीं । )
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