विद्यापति एक अध्ययन | Vidhyapati Ek Adhyyan

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Vidhyapati Ek Adhyyan by रामरतन भटनागर - Ramratan Bhatnagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चिद्यापति, उनका रचनाएं श्रीर व्यक्तित्व ११ फा सहारा दृ पदो पर दै । यद प्रस्तुत घातोचना फा विषय है। इनमें विदयापति एक साथ संगारिक कवि, भक्त, नीतिजक्ञ 'ीर काव्य-पंछित के रूप में मारे सामने आाते हैं । विद्यापति का व्यक्तित्व कुछ ऐसा है कि साघारण वुद्धि फी पकड़ में नहीं थाता । इसका कारण यह हैं कि उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी कर छन््ोनि पने समय फी सारी प्रवृत्तियों का किसी न किसी रूप में प्रतिनिधित्व फिया। वह प्रधानतया रसिक श्र पंडित थे, परन्तु इन दो प्रयृत्तियों में से कौन-सी प्रधान यी, यह्‌ कष्टना कठिन हैं । ये दोनों प्रयृत्तियाँ उनकी पदली रचना ( कीर्तिलता ) में दी मिल जाती हूँ जददाँ तरुण कवि जौनपुर की वेश्याशषों का बणन फरता है-- एक दि पत्र. पसार रूप लोब्वण गुणो श्रागरि। चाननि सीथी मांछि वदस सए सदसद्धि नागरि ॥ सम्मापण किद्ु वेश्रान कइ तासजो कद्दिनी सबब कई | विक्सण६ वेठाइइ श्रघु सुखे हिटि कूवूएल लाम रद ॥ सव्वडं केरा रिज वउन तरुणी दरि वंक चोरी पेम पिश्रारिश्रो । श्रपने दोप वश्यक (सब दिशाओं म फैलाव पला थ।| रूपवती, युवती, नागरी, गुणागरौ वाननि्याँ गलियों में सेकड़ों सखियों के साथ चैठी थीं । सब कोई कुल न दुधु वाना करके उनसे बातचीत करता था, कहानी कहता था । सुख मे वेचता-खरीदत। या, चष्टि-कुतूदल-लाभ. में रद्द जाता था । सब दी की सीधी-सादी आँखें इन युवतियों को तिरछी दिखाई देती थीं--चोरी से प्रेम करने वाली प्रयि श्वपने दी दोप से सशंक रदती थीं । ) 1)




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